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विधा– गीत* मेघा बरसेंगे — जगदीश कौर प्रयागराज

प्रमुदित मन है प्रीतम आए, अब मेघा बरसेंगे।
दिल भी झूमे नाचे गाए, बादल भी गरजेंगे।।
हृदय तृप्त हो ऐसा खिलता, गुलाब महके सारे।
पूरी हो सारी आशाएँ,
पंछी कलरव मारे।।
वसुधा भी हरियाली ओढ़े, देख भ्रमर तरसेंगे।
*प्रमुदित मन है प्रीतम आए, अब मेघा बरसेंगे।।*
जन- जन ऐसे खिलते जैसे, दादुर गीत सुहाना।
कोयल कौआ मिल कर छेड़े, आज मधुर तराना।।
गीत मल्हार मिल कर गाएँ, हर दिल हर्षेंगे।
*प्रमुदित मन है प्रीतम आए, अब मेघा बरसेंगे।।*
धरती मेघा मीत अनोखी, बरसे अमृत बाणी।
आँखों से अब बरसे बूँदे, सुखद नवल है प्राणी।।
बरसे रे रसधार फुहारे, भाव -भाव उलझेंगे।
*प्रमुदित मन है प्रीतम आए, अब मेघा बरसेंगे।।*
जगदीश कौर प्रयागराज