व्यास, बाल्मीकि, शुकदेव और सूत जी ब्राह्मण थे। इसका प्रमाण साक्ष्य। — उर्मिला पाण्डेय

भैय्या व्यास शुकदेव जी ब्राह्मण थे बाल्मीकि ब्राह्मण थे सूत जी ब्राह्मण थे पता तो है नहीं किसी को पुराणों की बातों को समझने की कोशिश नहीं करते अपनी अपनी लगाने लगते हैं बाल्मीकि बृह्मा जी के मानस पुत्र प्रचेता ब्राह्मण ऋषि के पुत्र थे प्राचेतस बाद में तपस्या के बाद बाल्मीकि नाम पड़ा। मैं रामायण और महाभारत बाल्मीकि रामायण में प्रमाण सहित बता रही हूं। दूसरे बाल्मीकि हुए हैं उनका नाम बाल्मीकि था वह व्याधि पुत्र थे। व्यास जी मत्स्यगंधा (सत्यवती) मंछोदरी जो देव कन्या थी जिस मछली से उसका जन्म हुआ था वह अप्सरा थी दुर्वासा के शाप से मछली बनी थी वहीं उपरिचिरवीर देवता के पसीने के समागम से वह मछली गर्भवती हुई मछली को एक धीमर ने काटा उसमें दो बच्चे निकले एक बालक और एक बालिका मछुआरे ने वह दोनों बच्चे राजा को समर्पित किए राजाके, कोई संतान नहीं थी उन्होंने बालक को ले लिया और कन्या धींवर को दे दी। यही माता सत्यवती थीं। मंछोदरी भी बड़े होने पर नाव चलाने लगीं एक दिन ऋषि ब्राह्मण पाराशर आए और मंछोदरी को देख कर बोले कि मैं तुम्हारे द्वारा कृष्ण द्वैपायन व्यास भगवान को उत्पन्न करना चाहता हूं मंछोदरी ने कहा मैं क्वारी हूं मुझे दोष लगेगा पाराशर ने कहा तुम क्वारी ही बनी रहोगी तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा तुम्हारे द्वारा भगवान वेदव्यास का जन्म होता भगवान वेदव्यास उत्पन्न हुए और तुरंत पांच बर्ष के बालक बन गये तभी से मत्स्यगंधा का नाम सत्यवती पड़ा और उनके शरीर से फूलों की गंध आने लगी थी जंगल में तपस्या करने के लिए जाने लगे माता पिता को प्रणाम किया और मां से कहा मां जब तुम्हारे ऊपर कोई भारी संकट आए तो हमें याद करना मैं आ जाऊंगा अब सोचिए जो पैदा होते ही जंगल में चले गए उनके विषय में हम ग़लत बुद्धि लगाते हैं जब पुरु वंश डूब रहा था तभी माता सत्यवती ने भगवान वेदव्यास को याद किया तभी सभी को पता चला कि सत्यवती के पुत्र व्यास जी हैं।इस प्रकार व्यास जी देव कन्या मत्स्यगंधा और पाराशर जी के पुत्र ब्राह्मण हैं वंश पिता के गोत्र से चलता है ना कि मां के गोत्र सेव्यास, जी ब्राह्मण थे। व्यास और वटिका के पुत्र शुकदेव जी थे जो पहले एक तोते के रूप में थे उन्होंने अमर कथा शंकर जी की सुनी थी वही तोता व्यास के पुत्र बना इस कारण उनका नाम शुकदेव पड़ा शुकदेव जी तो परमहंस थे। शुकदेव भी व्यास पुत्र थे अर्थात ब्राह्मण थे। सूत जी का नाम सूत था जाति सूत्र नहीं थी वह वह लोमहर्षण बाह्मण ऋषि के पुत्र थे वह भी ब्राह्मण थे।भागवत में शिव पुराण में महाभारत में इसका प्रमाण है।
परंतु ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए इस तरह से सभी लोग मानने को तैयार ही नहीं है मैंने भी संस्कृत से एम ए आचार्य और हिन्दी से एम ए किया है। मैं भी कथा कह सकती हूं प्रवचन करती हूं कवयित्री हूं लेकिन कथा नहीं कहती मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि लड़कियों को व्यास गद्दी पर बैठने का अधिकार नहीं है मुझे बात समझ में आ गई। कथा कहने का सभी को अधिकार है लेकिन उसका पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तभी जाति छिपाकर नहीं नौटंकी नहीं।
मैं ये जो शास्त्री लिखे बैठे हैं इनसे पूछो कि शास्त्री की कौन सी पढ़ाई है बता नहीं पाएंगे चौदह माहेश्वर सूत्र ही बता दें। कहने चल दिए कथा। अपने घर में पढ़ो बच्चों को सुनाओ लेकिन बिना वेद पुराण शास्त्रों आरण्यक ग्रंथों ब्राह्मण ग्रंथों वेदांगो के ज्ञान के बिना कथा कहना बेकार है भागवत कथा तो भगवान का स्वरूप है आत्मा के उद्धार के लिए जीव के कल्याण के लिए शांति के लिए सुनाई जाती है लेकिन ये नकली शास्त्री तो मनोरंजन करते हैं नौटंकी कर रहे हैं यह कथा नहीं है। इससे व्यास गद्दी की गरिमा महिमा खंडित होती है इसे मज़ाक बना कर रख दिया है।