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इतिहास की प्रभावशाली माँ जीजाबाई / सुप्रसिद्ध लेखिका व कवियित्री मंजू शर्मा की कलम से 

 

कहते है ऐतिहासिक हो चाहें पौराणिक माँ तो माँ होती है। और हमारे देश में ऐसी माँ ओ की कमी नहीं। मुझे भी स्कूल टाइम से एक माँ के शौर्य और पराक्रम ने बहुत प्रभावित किया था जिसकी गाथा सुनकर मन गर्वित महसूस करता है। तो आइए आज हम एक और ऐतिहासिक माँ के बारे में जानें जिन्होंने अपने बेटे को अच्छे संस्कारों से सिंचित कर उसके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के ऐसे बीज बोए कि जिसके चलते उनके पुत्र शिवाजी एक वीर महान निर्भिक नेता, राष्ट्रभक्त कुशल प्रशासक बनें। उस माँ का नाम था , जीजाबाई ।

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को जिजाऊ महल, सिंदखेड राजा क्षेत्र (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता लखुजी जाधव थे जो निजाम शाही सुल्तान के दरबार में एक जागीरदार थे। लखुजी उसके राज्य के एक छोटे हिस्से को संभाला करते थे। उनकी माता का नाम महालसाबाई जाधव था। उनका विवाह छोटी उम्र में ही शाहजी भोंसले के साथ कर दिया गया था।
भोंसले जी ने जीजाबाई को खूब सम्मान दिया। एक युद्ध के दौरान जीजाबाई और बच्चों की रक्षा के लिए उन्हें शिवनेरी किले में रखा गया। उस समय शाह जी राजे के बहुत शत्रु हुआ करते थे।
जीजाबाई ने उस पवित्र शिवनेरी के दुर्ग में शिवाजी को जन्म दिया था। उस समय मुस्तफाखाँ ने शाह जी को बंदी बना दिया था। जीजाबाई…वो एक महान देशभक्त थीं, जिनके मन में बचपन से ही रोम-रोम में देश प्रेम की भावना प्रज्ज्वलित थी। उनके मन में स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना रही। वो छत्रपति शिवाजी महाराज की माता थी। उन्होंने अपने पुत्र को प्राचीन भारत के महान इतिहास, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों का ज्ञान दिया। शिवाजी को उन सभी गुणों व कर्तव्यों के बारे में बताया जिन्हें एक महान आदर्श व्यक्ति अपनाता है।

जीजाबाई को मराठा साम्राज्य की राजमाता कहा जाता है। क्योंकि जीजाबाई अपने आप में एक बेहद प्रभावशाली और बुद्धिमान महिला थी।
उन्होंने अपने पवित्र हाथों से मराठा साम्राज्य को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राजमाता जीजाबाई का पूरा जीवन साहस, त्याग और बलिदान से परिपूर्ण रहा। उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी को भी समाज के कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी।
जीजाबाई की जीवटता और अपने पुत्र के जीवन में उसके शौर्य और पराक्रम को प्रेरणा देने का एक छोटा-सा उदाहरण है । सिंहगढ़ का किला

जीजाबाई जब भी सिंहगढ़ के किले पर मुगलों के झंडे को देखती तो उनका कलेजा दुख से भर जाता था। जब जीजाबाई ने इस व्यथा को अपने पुत्र के साथ साझा किया उस समय शिवाजी इतने परिपक्व नहीं थे। उन्होंने जीजाबाई के सामने सिर झुकाते हुए कहा, “माता! मुग़लों की सेना हमारी तुलना में बहुत विशाल है । हमारी मौजूदा स्थिति भी उनकी तुलना में कमज़ोर है । ऐसे में उनसे युद्ध करना और सिंहगढ़ से उनका झंडा उतारना आसान नहीं होगा । यह एक कठिन लक्ष्य है।” शिवाजी का यह जवाब जीजाबाई के गले से नहीं उतरा। वो आवेश में आ गईं और गुस्से में कहा, ”धिक्कार है तुम्हे बेटा शिव! तुम्हें ख़ुद मेरा बेटा कहना छोड़ देना चाहिए। तुम चूड़ियां पहनकर घर में बैठो, मैं स्वयं फ़ौज के साथ सिंहगढ़ के दुर्ग पर आक्रमण करूंगी और विदेशी झंडे को उस पर से उतार कर फेंक दूंगी।”
मां की बातें सुनकर शिवाजी लज्जित हो गए। उन्होंने सबसे पहले अपनी माँ से क्षमा माँगी फिर बोले, “माता, मैं तुम्हारी यह इच्छा ज़रूर पूरी करूँगा, चाहे जो कुछ हो जाए। अगले ही पल उन्होंने तानाजी को बुलवाया और जंग की तैयारी करने के लिए कहा और एक दिन फतह हासिल की…

जीजाबाई ऐसे व्यक्तित्व की धनी रही है, जिनसे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
उनका पूरा चरित्र ही प्रभावशाली रहा ।
वीर माता और राष्ट्रमाता के रूप जीजाबाई की देशभक्ति और शौर्य की जितनी तारीफ की जाए कम है।

मंजू शर्मा

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