प्रेम और कर्तव्य // लेखिका मीनाक्षी सुकुमारन

प्रेम और कर्त्तव्य जीवन के दो ऐसे पहलू हैं जो एकदूसरे के पूरक हैं और एक के बिना दूसरा अधूरा। क्योंकि रिश्ता कोई भी हो उसमें जितने ज़रूरी एहसास, भावनाएं, निष्ठा, वफादारी है उतना ही ज़रूरी प्रेम व कर्तव्य।
क्योंकि रिश्ते को यदि हम प्रेम से नहीं सींचेंगे अपना कर्तव्य समझ तो वो मुरझा जाएगा और हाथों से रेत की तरह फिसल जाएगा।
मिसाल के तौर पर माता पिता का कर्तव्य होता है बच्चों का लालन पालन, पोषण, उनकी पढ़ाई, लिखाई और हर छोटी बड़ी ज़रूरत का ध्यान। यहां अगर सिर्फ कर्तव्य हो एक ज़िम्मेदारी की तरह और प्रेम न हो तो परवरिश अधूरी रह जायेगी क्योंकि बच्चों को सुख सुविधाओं के साथ समय और प्यार की भी बहुत ज़रूरत होती है जितनी चीज़ों की।
ठीक उसी तरह जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और माता पिता वृद्ध वो उनकी देखभाल न करें, उन्हें सम्मान न दें, उनसे बात न करें या अकेला बेसहारा छोड़ दें तो
इस से बड़ा पाप कोई नहीं होगा यूँ माता पिता की अवहेलना और तिरस्कार।
जीवन के इस कठिन पहर बच्चों का परम कर्तव्य है वो अपने माता पिता का साथ दें, उनकी हर छोटी बड़ी ज़रूरत का ध्यान रखें, उन्हें प्रेम, समय, सम्मान और साथ दें।
यही जीवन का नियम है, यथार्थ सत्य प्रेम और कर्तव्य
एक दूसरे के पूरक हैं दोनों साथ ही चलें तो हर रिश्ता फलता फूलता है फिर चाहे माता,पिता के साथ बच्चों का, बच्चों का माता पिता के साथ, बहन- भाई का, पति-पत्नी का अन्य कोई भी रिश्ता हो या फिर दोस्ती सब की नींव प्रेम और कर्तव्य ही है।।
…मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा