Uncategorized

तलाश ज़िंदगी की // लेखिका प्रवीणा सिंह राणा 

 

रवि एक साधारण युवक था, लेकिन उसके मन में हमेशा एक सवाल गूंजता रहता— “ज़िंदगी का असली मकसद क्या है?” वह एक अच्छी नौकरी, आरामदायक घर और हर सुविधा के बावजूद खुद को अधूरा महसूस करता था।
एक दिन, उसे एक पहाड़ी गाँव में जाने का मौका मिला। वहाँ के लोग सीमित संसाधनों में भी खुश थे। एक बुजुर्ग संत से उसने अपना सवाल किया— “क्या पैसा, नाम या सफलता ही ज़िंदगी का मकसद है?”
संत मुस्कुराए और बोले, “यदि तुम्हें सच में जवाब चाहिए, तो कुछ दिन इस गाँव में रहकर देखो।”
रवि ने गाँव में रहकर वहाँ के लोगों की दिनचर्या को करीब से देखा। वे दिनभर मेहनत करते, एक-दूसरे की मदद करते और शाम को मिलकर हंसते-बोलते। वे कम में भी संतुष्ट थे।
एक शाम, रवि ने संत से कहा, “यहाँ के लोग बड़े सपने नहीं देखते, फिर भी खुश रहते हैं। ऐसा कैसे?”
संत ने उत्तर दिया, “क्योंकि उन्होंने ज़िंदगी को जटिल नहीं बनाया। वे वर्तमान में जीते हैं, न भविष्य की चिंता करते हैं, न अतीत का बोझ उठाते हैं।”
रवि को समझ आया कि उसने हमेशा सफलता को ही ज़िंदगी का अर्थ माना, लेकिन असल खुशी छोटे-छोटे पलों में थी— अपनों के साथ बिताए लम्हों में, किसी की मदद करने में, और हर परिस्थिति को सहजता से अपनाने में।
कुछ दिन बाद जब वह शहर लौटा, तो उसकी सोच बदल चुकी थी। अब वह केवल उपलब्धियों की दौड़ में नहीं था, बल्कि हर दिन को पूरे दिल से जीने की कोशिश करने लगा।
ज़िंदगी की उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी।

प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!