लघु कथा– प्रेम और कर्तव्य // लेखक महेश तंवर

“प्रेम और कर्तव्य” जीवन को सार्थक बनाने वाले ऐसे तत्व हैं, जिसके बिना जीवन नीरस है। प्रेम किसी के भी प्रति हो सकता है । चाहे वह जड़ हो या फिर चेतन। जीव जंतु और प्राणी सृष्टि से स्वभावगत प्रेम करता है। लेकिन मनुष्य प्रभु की सर्वश्रेष्ठ कृति होने के कारण उसे अपने कर्तव्यों की सूझबूझ है।
जिसके प्रति मानव मात्र प्रेम कर रहा है, उसको बनाए रखने के लिए उसका क्या कर्तव्य है। यह उस व्यक्ति के विवेक पर आधारित है ।अब यहां कर्तव्य दो बातों पर निर्भर करता है एक तो स्व प्रेरित होकर अपना कर्तव्य निर्वाह करें और दूसरा बाह्य दबाव में आकर।
स्व प्रेरित होकर किया गया कर्तव्य पालन अपना, समाज और राष्ट्र के निर्माण के योगदान को बल देता है जबकि बाह्य दबाव से किया गया कर्तव्य पालन भ्रष्टाचार, घृणा, द्वेषता और अ सामाजिकता को जन्म देता है।
उदाहरणार्थ एक बार रामनिवास बांयला जी ने बड़े प्रेम से किसी दीन विद्यार्थी को प्रतियोगिता पुस्तक दी। वह विद्यार्थी उस पुस्तक का बहुत ही लगन से अध्ययन किया और वह कामयाब भी हो गया। बहुत खुशी की बात थी। काफी दिन बीत गए ,वह विद्यार्थी नौकरी करने लगा। एक दिन संयोग से वह विद्यार्थी रामनिवास जी को राह में मिल जाता है। वे उस विद्यार्थी से हाल-चाल पूछते हैं। विद्यार्थी ने कहा, साहब! आजकल में नौकरी कर रहा हूं। रामनिवास जी को बड़ी खुशी हुई। प्रेम से गदगद होकर सीने से लगाया और कहा कि वह पुस्तक अब मुझे वापस लौटा दो।
इतना कहते ही विद्यार्थी मायूस हो गया। कहा, गुरुजी! वह पुस्तक तो मैं कबाड़ी वाले को बेच दी। इतना कहते ही रामनिवास जी कहने लगे कि भाई! बेच दी तो कोई बात नहीं, लेकिन तेरा कर्तव्य था कि उस पुस्तक को लेकर अपनी कामयाबी का संदेश मुझे देने आते तो कितना अच्छा होता।
महेश तंवर