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बचपन की दोस्ती, मेरी कहानी // लेखिका ज्योति पाण्डेय

 

बात उस समय की है जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी बहुत छोटी ज्यादा कुछ याद नहीं है पर कुछ धुंधली यादे रह जाती है।
उस समय मैं करीब दस साल की थी, मेरी दोस्ती बबीता से हो गयी हम दोनो एक ही गांव से थीं मेरा घर उसके से थोड़ी दूरी पर थी हम दोनों में काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी एक साथ हंसते खेलते हम बड़े हो साथ ही साथ हम दोनों ने दसवीं और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई भी एक साथ पास की थी हम दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि एक दुसरे को देखे बिना दीन नहीं गुजरता था मेरी एक छोटी बहन भी थी हम तीनों एक साथ स्नातक की पढ़ाई भी पुरी की कब इतने बड़े हो गए पता ही नहीं चला साथ साथ रहते हुए कभी ख्याल ही नहीं आया कि हम एक दिन बिछड़ जायेंगे मेरी शादी ठीक हो गई थी सोच सोच कर रोना आ रहा था दिल जैसे कचोट रहा था एक तरफ शादी की खुशी और दुसरी तरफ बीछडने का गम, मैं अपने ससुराल चली गई और कुछ समय बाद उसकी भी शादी हो गई। शादी के बाद भी मेरी दोस्ती चलती रही पर उसकी शादी ज्यादा पैसे वाले के घर हुआ था
पैसा अच्छे अच्छे को बदल देता है इसके आगे की कहानी बहुत दर्द भरा है बस इतना जान लीजिए कि मेरी दोस्ती में एक ऐसा दरार पड़ा कि हम दोनो एक दूसरे से आज तक नहीं मिल पाये
अपने अपने दुनिया में हम बीजी हो गये।।
ज्योति पांडेय संतकबीरनगर खलीलाबाद से

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