लघुकथा — ईर्ष्या / लेखिका सुनीता तिवारी

स्नेहा और हरलीन बचपन से साथ बड़ी हुईं,खेली,साथ ही पढ़ने जाती थीं।
स्नेहा के मम्मी पापा सरकारी नौकरी में थे इसलिए स्नेहा के पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी।
हरलीन हल्के तबके की थी परन्तु उसके मां पिता गरीबी के बावजूद भी आवश्यक पूर्ति करते थे।
हरलीन स्नेहा की हर चीज की तारीफ करती और भोली स्नेहा उसे दे देती।
स्नेहा हरलीन को बहुत प्यार करती थी।
हर समय अपने साथ रखती अपनी पुस्तकें उसे पढ़ने को देती।
अपने कपड़े पहनने को देती।
आज दोनों को विभा के विवाह में जाना था।
स्नेहा ने खुश होकर कहा हरलीन मैं यह लहंगा जयमाल के समय पहनूँगी।
मैं भी सुन्दर सूट लेकर चल रही हूँ।
ठीक है मुझे दे, एक ही अटैची में रख लेती हूँ।
हरलीन ने कहा-
अटैची में रखकर दोनों चल दी।
सुबह दोनों को वापस आना था।
नियत समय पर दोनों विभा के घर पहुंची। दोनों जयमाल के लिए तैयार होने लगीं।
अरे हरलीन-
अब मैं क्या पहनूँगी मेरा लहंगा तो पूरा कटा हुआ है और कोई ड्रेस तो मैं लायी ही नहीं।
और मैंने तो तुझे एकदम सही लहंगा दिया था फिर तूने क्यों काटा।
क्या करेगी तू मेरा?
आज तक मेरी सहायता करके मुझे नीचा दिखाती आ रही है अब ऐसे ही चल।
स्नेहा को कभी पता ही नहीं चला उसकी प्रिय सखी हरलीन उससे ईर्ष्या रखती है।
उसने तो हमेशा उसे अपना सच्चा दोस्त समझा।
ऐसा क्या हुआ जो हरलीन ऐसी हरकत पर उतर आई।
सुनीता तिवारी