टीस ” // स्वर्णलता सोन

,,,,,,और उसमें झट से
हाथ की रोटी तवे पर डाली,और एक ठंडी साँस भरी,उसके हाथ को चूल्हे की आँच लग गयी थी। उसे याद आया कि वो भी
क्या दिन थे जब मनोज के पापा ज़िंदा थे,महारानियों की तरह रक्खा हुआ था उसे।घर मे नौकर चाकर,कपड़े धोने वाली,सफाई करनें वाली,खाना बनाने वाली,सभी थे,कभी पलंग से पांव भीनहीं उतारने देते थे। बड़ा सा बंगला,कार सब कुछ था उसके पास,जब हील के सैंडल पहन के ,खूबसूरत सारी पहन के कार में बैठती थी तो लोग देखते रह जाते थे।
पतिदेव का अच्छा सा व्यापार था। बहुत सुखी परिवार था। एक ही बेटा था,जो मां बाबा का लाडला था।
अचानक उसके कान में एक तीखी सी आवाज़ आयी,”जला दी न रोटी,कोई काम करना नहीं आता,इतनी उम्र हो गई है,रोटी तक बनानी नहीं आती” रागिनी चिल्लाई। नीरा के नाक में कुछ जलनें की महक आयी,उसकी तंद्रा टूटी,उसने देखा सच में रोटी जल गई थी।
“गलती हो गयी मालकिन”उसके मुंह से निकला।
नहीं अब मैं तुम्हें काम पर नहीं रक्खूंगी,मेरे पास पैसे फालतू नहीं है,निकम्मो को देने के लिए। “नहीं मालकिन मैं कहाँ जाउंगी इतनी रात को” उसनें कहा। कहीं भी जा मुझे कोई मतलब नहीं है।
नीरा की आंख से झर झर आँसू बह रहे थे।
उसनें अपना थैला उठाया व पार्क में आ गयी।
उसे वो अभागा दिन याद आ रहा था,जिस दिन उसके पति की दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी,बेटा मात्र 5 साल का ही था, उसे नहीं पता था कि उसके पति के नौकरों नें ही कब उनका व्यौपार आपने कब्जे में कर लिया था। उसने जैसे तैसे बेटे को पढ़ाया लिखाया,अपना घर बेच के उसे बाहर पढ़ने भेजा उसकी शादी करी। पर उसकी बहु ने आते ही बेटे को सिखा कर उसे घर से निकलवा दिया।
और वो दर दर की ठोकरें खाने लगी। कि एक दिन नीरजा ने उसे अपने घर में रोटी बनाने का काम दे दिया,बदले में रहना,खाना इत्यादि देने को कहा। वो खुशी खुशी करने लगी,दर दर भटकने से अच्छा था एक ठिकाना मिल गया।अब वो 65 साल की हो चुकी थी।
एक टीस सी उठी उसके हाथ मे,उसे याद आया उसका हाथ जल गया था,पर जो टीस उसके दिल में उठी थी उसकी जलन,हाथ की जलन से कहीं ज्यादा थी।
स्वर्णलता सोन