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पश्चात्य संस्कृति ने छीने नवयुवकों के संस्कार // जे पी शर्मा , नजर इंडिया 24

 

भारतीय संस्कृति अपनी नैतिकता, संस्कारों और
मूल्यों के लिए जानी जाती है। यह हमें आदर, संयम, और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराती है। लेकिन आधुनिक युग में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बढ़ने से हमारे नवयुवकों के संस्कार धीरे-धीरे क्षीण होते जा रहे हैं। पश्चिमी संस्कृति ने जहां तकनीकी विकास, स्वतंत्रता और खुले विचारों का मार्ग प्रशस्त किया, वहीं इसने पारिवारिक मूल्यों, परंपराओं और नैतिकता पर गहरा आघात भी किया है।

संस्कारों का ह्रास – एक गंभीर चिंता

आजकल युवा पीढ़ी पश्चिमी पहनावे, खानपान, और जीवनशैली की ओर अधिक आकर्षित हो रही है। उन्हें भारतीय सभ्यता और संस्कृति पुरानी व दकियानूसी लगने लगी है। इस कारण वे अपने माता-पिता, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करना भूलते जा रहे हैं। पारिवारिक रिश्तों की गरिमा घट रही है, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, और व्यक्तिगत स्वार्थ अधिक महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।

आधुनिकता के नाम पर भटकती युवा पीढ़ी

युवा वर्ग अब आधुनिकता को पश्चिमी सभ्यता की नकल करने में देख रहा है। नैतिक मूल्यों से समझौता कर वे स्वतंत्रता को स्वच्छंदता मानने लगे हैं। नशे की लत, फैशन की होड़, अनुशासनहीनता, और इंटरनेट व सोशल मीडिया का दुरुपयोग इसके प्रमुख उदाहरण हैं। माता-पिता से संवाद कम हो रहा है, बच्चे पारंपरिक त्योहारों व संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं।

पश्चिमी प्रभाव का दुष्प्रभाव

संयुक्त परिवारों का विघटन – पश्चिमी संस्कृति व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अधिक महत्व देती है, जिससे संयुक्त परिवारों की परंपरा टूट रही है।

नैतिक मूल्यों का पतन – आजकल प्रेम और विवाह में पाश्चात्य शैली अपनाई जा रही है, जिससे रिश्तों में विश्वसनीयता घट रही है।

फास्ट फूड और अस्वस्थ जीवनशैली – पारंपरिक भोजन छोड़कर युवा जंक फूड और पैकेज्ड फूड की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

बड़ों का अनादर —
भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान अनिवार्य था, लेकिन पश्चिमी प्रभाव के चलते यह मूल्य कमजोर हो रहा है।

 

संस्कार बचाने की पहल आवश्यक

हमें यह समझना होगा कि आधुनिकता अपनाना गलत नहीं है, लेकिन अपने मूल संस्कारों को खो देना भी उचित नहीं। माता-पिता को बच्चों को भारतीय संस्कृति के महत्व से अवगत कराना चाहिए। शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति को अधिक महत्व देना आवश्यक है। हमें अपने धार्मिक ग्रंथों, त्योहारों और परंपराओं का पालन करना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे।

इसका मतलब है कि

पश्चिमी संस्कृति से भारतीय मूल्यों और संस्कारों को छोड़ना हमारी संस्कृति को कमजोर कर सकता है। संस्कारों की रक्षा करना केवल माता-पिता और शिक्षकों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। यदि हम अपने संस्कारों को बचाने का प्रयास नहीं करेंगे, तो हमारी भावी पीढ़ी अपनी पहचान ही खो बैठेगी। इसलिए, हमें संतुलन बनाते हुए आधुनिकता और संस्कारों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा।

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