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जूता चोर — अलका गर्ग

 

मेरे पति ऋषिकेश में बहुत बड़ी कंपनी में wise president के पद पर कार्यरत थे।देवभूमि में आ कर हम लोग बहुत उत्साहित थे।ऋषिकेश प्राकृतिक छटा और कल कल करती पतित पावनी के लिये हमें बहुत ही पसंद आया।हमने बिना देर किए हुए उत्तराखंड के चारों धाम देखने का प्रोग्राम बना लिया। शुरुआत यमुनोत्री से करनी थी।गाड़ी में बस हम दोनों और ड्राइवर को जाना था।दो लोग और भी बैठ सकते थे तो मेरे पति ने अपने आधीन सहकर्मी और उनकी पत्नी को भी साथ चलने के पूछा।वे सहर्ष तैयार हो गये।हम भी खुश थे कि इतने लंबे सफ़र में साथ भी अच्छा रहेगा और समय भी अच्छा कटेगा।हमने ऋषिकेश से शाम को निकल कर रात में मसूरी रुकने का सोचा जिससे कि सुबह तड़के ही मसूरी से जमुनोत्री की यात्रा शुरू कर दें।
मसूरी की चढ़ाई शुरू होते ही एक पुराना शिवमंदिर आता है जहां पर सभी जाने आने वाली गाड़ियाँ ज़रूर दर्शन को रुकतीं हैं।हम भी रुके।रात में आठ बज रहे थे मंदिर बंद होने वाला था तो थोड़ी भीड़ थी।हम दर्शन करके बाहर निकले तो यह क्या..?हमारे साथी के नये जूते ग़ायब थे जो उन्होंने उसी दिन सुबह चढ़ाई के लिए बड़े शौक़ से ख़रीदे थे।वो भी जीवन में पहली बार इतने महँगे जूते ख़रीदे थे।अब क्या करें ?? डेढ़ घंटे में मसूरी पहुँचने तक वहाँ का बाज़ार भी बंद हो जाएगा और सुबह चार बजे यमुनोत्री के लिये निकालना है।कड़कती ठंड में बिना जूते के ज़मीन पर पाँव रखना भी असंभव था।
कुछ नहीं सूझ रहा था तो सोचा जो हमारे जूते पहन गया है वो अपने ज़रूर यहीं छोड़ गया होगा तो मंदिर तेज़ी से ख़ाली हो रहा है कुछ देर रुकते हैं अगर कोई लावारिस जूता बचता है और पैर में फिट आता है तो उसी को पहन कर आगे बढ़ा जाये।
मंदिर में बस एक पति पत्नी बचे थे और बाहर दो मर्दाने और एक जनाने जूते।हम लोगों ने अन्दाज़ लगाया कि बढ़िया जूते तो उन महाशय के होंगे क्योंकि कपड़ों से वे संभ्रांत लग रहे थे और जनाने जूते उनकी पत्नी के।हम मसूरी पहुँचने की बहुत जल्दी में थे और वे लोग बिल्कुल भी जल्दी में नहीं थे।वे दर्शन करके आराम से सीढ़ियों पर बैठ कर चाय पीने लगे।होटल से बार बार फ़ोन आ रहे थे।हम सभी ने दिमाग़ लगाया और हमारे साथी ने पुराने जूते चोर के छोड़े हुए सोच कर पहने और हम बहुत तेज़ी से मसूरी की तरफ़ बढ़ चले। चोरी से मन दुखी था और आगे की यात्रा में परेशानी की चिंता भी थी।हम आपस में बातें करते बढ़े जा रहे थे कि पहले बाज़ार जा कर देखेंगे शायद कोई जूते की दुकान खुली मिल जाये क्योंकि वे जूते बस काम चलाऊ ही थे।तभी एक गाड़ी ने हॉर्न देते हुए हमें ओवरटेक किया और हमारा रास्ता रोका।उसने से दो आदमी तेज़ी से आये और हमें गाड़ी में से उतरने के लिए बोले।राह में डकैती की आशंका से हमारा दिल काँप उठा।ये क्या भगवान हम आपके दर्शन को निकलें है और रास्ते में ये कैसे कैसे व्यवधान आ रहे हैं।डरते हुए हम चारों और ड्राइवर नीचे उतरे।वे लोग टोर्च जला कर हमारे पैर देखने लगे फिर चिल्लाए ये रहे जूते..!
अरे ये इनके जूते थे और ये लोग जूते के लिए हमारा पीछा कर रहे थे।अब तो हमारी सिट्टी पिट्टी गुम..! उन्होंने हमें बहुत डाँटा कि इतने अच्छे कपड़े पहन कर इतनी महँगी गाड़ी में घूमते हो और जूते चुराते हो।ग़ुस्से में हमारे ड्राइवर से पूछे कहाँ से ला रहे हो इन्हें ??उससे यह जान कर कि राकेश ऋषिकेश में देश प्रसिद्ध कंपनी के सर्वोच्च पदस्थ अधिकारी हैं ,वे और भी भड़क गये।बोले-इतने बड़े लोग और ऐसा बुरा काम ।उन्हें हमने पूरी स्थिति बताई और अपनी मजबूरी भी।यह भी बताया कि हमने चोर के छोड़े हुए बेकार जूते समझ कर पहन लिए क्योंकि मंदिर में सिर्फ़ आप ही आदमी नज़र आ रहे थे।
अब तो उनका पारा सातवें आसमान पर था क्योंकि वे उनकी लंबी चौड़ी प्यारी पत्नी के जूते थे।हम उन्हें बेकार और चोर के बोल रहे थे।हम तो विकट परिस्थिति से निकलने की बजाय और फँसते जा रहे थे।बड़ी हास्यापद स्थिति पैदा हो गई थी।
पत्नी के जूते और मर्दाने जो एक आदमी के पैर में आ गये..वे रिटायर्ड आर्मी ऑफ़िसर थे तो बातों के लहजे में गर्मी और ग़ुरूर दोनों झाँक रहा था।बार बार माफ़ी माँग कर उनके जूते वापस कर बड़ी ही मुश्किल से पीछा छूटा।मसूरी में न घुस सकने की,वहाँ पिटाई या थाने जाने की सारी धमकियाँ उस दिन जीवन में पहली बार,और भगवान करे आख़िरी बार हम सुन चुके थे।अब हमारे साथी बिना जूते के थे।
इस सब में एक घंटा और ख़राब हो गया तो बाज़ार तो पूरी तरह से बंद हो चुका था।
सुबह चार बजे का प्रोग्राम रद्द करके हमने नौ बजे बाज़ार खुलने का इंतज़ार किया,जूते ख़रीदे और आगे की यात्रा शुरू की।लेकिन उनके जूता पहनते ही हम चारों की हँसी बेक़ाबू हो गई।आर्मी ऑफ़िसर के लड़ने के लहजे की नक़ल उतार कर पूरे रास्ते हम हँसते ही रहे।हमें मज़ाक़ का एक मुद्दा मिल गया था।हम सभी एक दूसरे से पूछते रहते….जूते हैं ना …??

अलका गर्ग, गुरुग्राम

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