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कहानी- फरसा वाले संत — पृथ्वीराज लोधी

 

एक समय की बात है उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के गांव दनियापुर फतेहपुर में फरसा वाले संत के नाम से एक प्रसिद्ध बाबा रहा करते थे जो क्रोधी स्वभाव के थे और अपने साथ एक फरसा रखते थे ऐसी मान्यता है कि वह एक सिद्ध संत थे जिनको हनुमान की सिद्धि प्राप्त थी और वह हनुमान जी के सच्चे भक्त थे एक बार उनको किसी दावत में निमंत्रण नहीं दिया गया तब अपने सीने पर ही एक-एक कर 100 ईंटों के टुकड़े कर दिए दूसरी है फतेहपुर गांव में भंडारे का मंदिर पर प्रोग्राम चल रहा था बारिश के काले बादल आसमान में मंडरा रहे थे और बारिश की कुछ बूंदें निकल ना प्रारंभ हो गई थी जिसको देखकर भंडारा खाने वाले व्यक्ति उठकर भागने लगे साधु ने तत्काल लोगों को रोका और अपना फरसा शिव मंदिर के प्रांगण में घुमाते हुए बारिश को ललकार लगाने लगे कि जब तक मंदिर प्रांगण में भंडारे का प्रोग्राम चलेगा तब तक तुम मंदिर प्रांगण में बारिश नहीं करोगे इतना कहते ही मंदिर के आस पास बारिश होती रही और गांव के लोग मंदिर के खुले मैदान में भंडारा पाते रहे इस शक्ति को देखते हुए गांव के सभी लोग चकित हो गए दूसरा गांव दनियापुर से कुछ एक दो किलोमीटर के अरसे से एक गांव में उनकी दावत हुई थी उनके साथ एक ब्राह्मण भी गए थे उन्होंने ब्राह्मण से कहा की बेटे जल्दी से भोजन कर लीजिए नहीं तो यहां पर अनर्थ होने वाला है ब्राह्मण ने साधू की बातों को हल्के में लिया और बोले अभी कर लेंगे संत जी बोले बेटे फिर पछताओगे फिर भोजन नहीं मिलेगा इतना कहते ही 10 मिनट के पश्चात उस दावत वाले व्यक्ति का लड़का छत से कढ़ाई में गिर गया और खत्म हो गया यह देखते ही ब्राह्मण साधु के चरणों पर गिर गया बोल महात्मा जी आपने सही कहा मैंने आपकी बात को अनसुना कर दिया अंत समय महात्मा जी ने अपने प्राण मडयन उदय राज के गांव में शिव मंदिर पर त्याग दिए और वह फरसा वाले बाबा के नाम से मशहूर हो गए वहीं पर उनकी समाधि का निर्माण कर दिया गया
रचनाकार पृथ्वीराज लोधी राजपूत

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