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वृद्धाश्रम — माया सैनी

 

मीना को इस दोगले समाज से डर लगने लगा था ,जहाँ पर स्त्री को देवी कहा जाता है वहाँ पर घर में प्रताडना सहती रहती हैं।दिल में एक ख़ौफ़ पलता था कि न जाने उसके साथ कब और क्या हो जाए !
शादी होने तक माँ बाप पर बोझ फिर ससुराल में कर्तव्यों की चक्की में पीसता बेबस जीवन !
दो बच्चों की माँ तो बन गयी ,पर पति
के लिए केवल उनकी शारीरिक तृप्ति की वस्तु !
सारी जवानी अपने पति के लिए और
बच्चों के पालन पोषण पर कुर्बान कर दिया।
बच्चों की शादी क्या हुई घर बहू का हो गया और मीना पराई !
अब बुढ़ापे को ओर अग्रसर था जीवन तो उसने समझाने की कोशिश की लेकिन बेटा बहू एक ही बात पर अड़े हुए थे कि उनको अब एक साथ नहीं रहना है बटंवारा चाहिए था। मीना को पति से अलग कर दिया। सभी चल अचल संपत्ति का बटवारा कर दिया। कुछ समय व्यतीत हुआ और मीना के पति की तबियत खराब रहने लगी। उनको सही इलाज ना मिलने की वजह से बात बिगड़ गई और वो चल बसे बिना मीना को कुछ बताये।अलग अलग रहने की वजह से वो अपने दिल की कोई बात भी नहीं बता सके।
दोनों बेटे और बहुऐं मीना को रखना नहीं चाहते थे एक दिन ऐसा आया कि बच्चों ने उसे वृद्धाश्रम छोड़ दिया । कुछ दिन तो वहाँ अच्छा नहीं लगा जिस घर में इतने सालों रही उसकी और बच्चों की याद आती। फिर धीरे धीरे सम हमउम्र के लोगों से दोस्ती और बातचीत करने लगी। अब वृद्धाश्रम घर से ज्यादा अच्छा लगने लगा। घर से ज्यादा यहाँ सुख और शांति मिलने लगी।
अब जब अपने बच्चों की याद आती तो कांपते हुए हाँथ आसमान की तरफ उठा कर बच्चों की ख़ुशी और सलामती के लिए दुआ करती रहती थी।

माया सैनी

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