कहानी: “भूख” — डॉ इंदु भार्गव

गाँव के एक छोटे से घर में एक छोटी सी लड़की रहती थी, जिसका नाम माया था। माया का परिवार बहुत गरीब था, और उनके पास खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं था। हर दिन माया और उसकी माँ सूखी रोटी खा शीतल जल पी अपनी क्षुधा तृप्त कर लेती थी!
एक दिन माया बहुत कमजोर महसूस कर रही थी, उसकी आँखों में थकावट और भूख का दर्द साफ दिख रहा था। माँ ने पूछा, “क्या हुआ माया, तुम ठीक हो?” माया ने धीरे से कहा, “माँ, मुझे बहुत भूख लगी है।”
माँ का दिल दहल उठा। वह जानती थी कि घर में और कुछ नहीं बचा है, और बाहर से लाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। फिर भी उसने अपनी बेटी को सांत्वना देने की कोशिश की, “बिलकुल, बेटा, थोड़ी देर में खाना तैयार हो जाएगा। तुम थोड़ी देर और इंतजार करो।”
माया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और सोचने लगी, “क्यों नहीं हम लोग कभी भरपेट खाते?” उसका मन करता था कि किसी तरह वह चाँद से या सूरज से खाना मांग लाती। लेकिन सच्चाई यही थी कि माया के पास भूख को शांत करने के लिए कोई रास्ता नहीं था।
समय जैसे-तैसे कट रहा था, और माया की भूख उसे और भी कमजोर करती जा रही थी। वह रोज़ सोते समय यही सोचती कि काश, उसकी माँ के पास पैसे होते तो वह उसे अच्छा खाना खिला पाती। परंतु उसका दिल जानता था कि उसकी माँ ने हमेशा अपनी बेटी के लिए अपनी हर खुशी बलिदान कर दी थी, माँ बुझे चूल्हे पर पतीली चढ़ाए खाना पकाने का नाटक किए जा रहीं थीं! इंतजार था बेटी किसी तरह पानी पी कर सो जाए, माया की माँ के गालों पर समन्दर का मानो सारा खार जम गया था!!
उस दिन गाँव में एक बड़ा आयोजन हुआ था । कई लोग वहाँ आकर रुकते थे और खाने का आदान-प्रदान कर रहे थे। माया की माँ ने सोचा कि शायद यहाँ कुछ खाने का झूठा ही मिल जाए। वह माया को लेकर उस आयोजन में पहुंची। वहाँ, खाने की मेज़ें सजी थीं, और हर किसी के चेहरे पर संतुष्टि का भाव था!!
माया ने अपनी माँ से कहा, “माँ, क्या हम भी यहाँ से कुछ खा सकते हैं?”
माँ थोड़ी देर चुप रही, फिर उसने कहा, “यहाँ बहुत लोग हैं, हम थोड़ी देर और इंतजार करेंगे।
रिम झिम दूर खड़ी माया और उस की थकी माँ को देख रही थी,
लेकिन जैसे ही माया की माँ ने अपनी बात पूरी की, रिमझीम व्हा आ गईं उसने उन्हें खाने के लिए बुलाया। उस नन्ही बच्ची ने माया और उसकी माँ को दो प्लेटें दीं, जो भरपूर खाने से भरी हुई थीं। माया ने कभी इतना स्वादिष्ट खाना नहीं खाया था। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे, और उसका दिल बाग-बाग हो गया था!!
रिमझिम अपने मम्मी पापा को कह रही थी माँ हमे रईस लोगों से ज्यादा भोजन उन्हें खिलाना चाहिए जिन्हें भूख हो, उन्हें क्यु? जिन्हें भोजन की कदर नहीं
रिमझीम के माता पिता अपनी बेटी के उच्च व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए!!
उस दिन उस नन्ही बच्ची ने सीखा दिया था कि भूख सिर्फ पेट की नहीं होती, बल्कि दिल की भी होती है!!
सब समझ गए थे कि दूसरों की मदद और प्यार से ही किसी की भूख को शांत किया जा सकता है!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर!!