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लोकपर्व (फूलदेई )लेख — बिमला रावत

 

देवभूमि उत्तराखण्ड में वर्ष के सभी महिनों में कोई न कोई त्यौहार अवश्य मनाया जाता है l उन्हीं त्योहारों में एक विशेष लोकबालपर्व “फूलदेई “है जिसे सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में हर्षोल्लास से मनाया जाता है l
यह पर्व चैत्र माह की संक्रांति को मनाया जाता है, जब शीत ऋतु अपने अंतिम चरण में होती है और ग्रीष्म ऋतु अपने प्रथम चरण पर होती है l इस समय उत्तराखण्ड के पर्वत बुरांश, फुयूंली, बसिंग और अनगिनत स्थानीय फूलों से लगदग रहता है l यह पर्व पूरे एक माह तक चलता है लिह बालपर्व बैशाख माह की संक्रांति पर समाप्त होता है l
उत्तराखण्ड का यह बालपर्व मुख्यतः छोटे -छोटे बच्चों का पर्व है l फूलदेई के दिन छोटे छोटे बच्चे सुबह जल्दी उठकर छोटी -छोटी टोकरियों या डलिया में. फूल तोड़कर लाते हैं और फिर इन फूलों को टोकरी या डलिया में गुड़, चावल,पैसे रखकरसजाते हैं और गाँव के प्रत्येक घर के मुख्य द्वार की देहरी के दोनों ओर फूल और चावल डालकर उस घर की खुशहालीऔर समृद्धि की ‘फूलदेई छम्मा देई…..लोकगीत गाकर कामना करते हैं l
आज वक्त के साथ उत्तराखण्ड का ये स्थानीय बालपर्व लुप्त हो रहा है अतः हम सभी को अपनी लोकसंस्कृति को जिन्दा रखने व बढ़ावा देने. के लिए यथायोग्य प्रयास करना चाहिएl मेरा ये मानना है कि यह बालपर्व स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम है क्योंकि चैत्र माह से लेकर बैशाख माह तक का मौसम स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बेहतरीन होता है l

बिमला रावत (ऋषिकेश )
उत्तराखण्ड

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