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देश द्रोही की बेटी – अगला भाग – उपन्यासकार पुष्पा भाटी की कलम से continues

 

हिना ने करुणामय स्वर में चिल्लाते हुए कहा “पापा। हिन्दुस्तानी सिर्फ हिन्दुस्तानी आपकी करोड़ों की एम्पायर से मुझे फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए

क्या हिना। तुम मुझे हिन्दुस्तानी की पवित्रता का वाचन सुना अपनी करोड़ों की सम्पत्ति से वंचित कर देना चाहती हो? हिना ने मि. हितेष को घूरते हुए कहा- क्रोध जमा रखिय डैडी जान। आपने तो दुश्मनों की नौका का मल्लाह बनकर ही रहना सीखा है ।

हिना ने मि. हितेष को सहलाते हुए कहा- ‘डैडी मैं आपकी सच्ची पवित्रता व प्रगति की बात कह रही हूं। ओह। ओह। हितेष की आंखों में फिर क्रोध के भाव स्पष्ट झलकने लगे। यानी तुम एक बेटी का रूप धारण कर मुझे करोड़ो की सम्पति से वर्जित कर देना चहाती हो

ओ। हो। ‘नहीं डैडी ‘आप खुद ही मन घड़त स्टोरी बना रहे हो , अब्बा जान। हिना ने उत्तेजना भरे स्वर में कहा-हिन्दुस्तानी मर्दानगी के कवच पहनते हैं, आपकी तरह दौलत •से नहीं खेलते।

ठीक है, कोई भी बात न आगे बढ़े उससे पहले मैं हिन्दुस्तानी ब्रिगेडियर से बातचीत करूंगा।
वअपनी बातचीत को साधारण हिन्दुस्तानी की तरह करेंगे,
हितेष एक हस्ट-पुष्ट नौजवान था। अंग्रेजों की पोशाक में वह और भी गद्दार नजर आ रहा था। उसकी उम्र महज कोई तीस वर्ष थी। अंग्रेजों का वह विश्वासपात्र पहरेदार था। उसके नाम के कई कारखानों में अवैध माल तैयार करके अंग्रेज विदेश के जर्मन, इटली जैसे देशों को माल का आयात-निर्यात करके धनवान होते जा रहे थे।
हिन्दुस्तानी हितेष अपने कारखानों में था जब फोन की घण्टी घनघनाई।

हिन्दुस्तानी ब्रिगेडियर उसने मृदुल स्वर फूंका आई वांट टू स्पीक मि. हितेष। धीरे-धीरे गंभीर स्वर उभरा।
वह स्वर हितेश के लिये जाना-पहचाना था।
हितेष से पहले भी वह कई बार फोन पर बातचीत कर चुका था।
जय हिन्द हितेष। मैं हिन्दुस्तानी ब्रिगेडियर अभिषेक बोल रहा हूं। उसने सम्मान भरे स्वरों में कहा- ‘मैं चाहता हूं कि तुम इसी वक्त मुझे आकर मिलो
बेहतर है ! कप्तान।
मैं इन्तजार कर रहा हूं, दूसरी ओर स्वर उभरा। इस वक्त मैं अपनी सरकारी कोठी पर हूं।
फिर दूसरी ओर सम्बन्ध- विच्छेद हो गया।
उसने अन्य सिपाहियों को बुलाकर हिदायतें दी और विजिट बुक में एन्ट्री डाली कि वह हिन्दुस्तानी कप्तान के झुकावपूर्ण कारणों की वजह से उनकी कोठी पर जा रहा है। (लिखते-लिखते हाथ में कलम को लेते हुए अन्य सिपाहियों से कहने लगा) सावधान। रहियेगा दोस्त।
हिन्दुस्तान के गुण्डे घात लगाये बैठे हैं। अन्य सिपाहियों से चिंतित लहजे में कहा। पिस्तौल को हाथो में लहराते हुए तैनात सिपाहियो ने कहा-
हमारे लिये फिक्रमन्द होने के लिए आपका शुक्रिया दोस्त लेकिन हम सतर्क हैं। हमे कुछ नहीं होगा।
(मि. हितेष ने सिगरेट को सुलगाते हुए कहा) कमजोर दिल के इंसान ही अपनी दुआओ की दावत बहादुरो से मांगते है …….. शेष कल–

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