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संस्मरण– जीना सीखें, ज़िंदा दिखें — अमृत बिसारिया

 

मेरी बालकनी लंबी थी तो मैं रोज़ सुबह उठकर टहलती थी। दूध वाला ठीक 6:30 बजे दूध देने आ जाता था। उसकी साइकिल पे दूध की अनेक बाल्टियां लटकी होती थी और सुबह से ही वह दूध बाँटना शुरू कर देता था। सबसे पहले वह मेरे यहाँ दूध दे जाता था।

करीबन चार 5 साल बाद मेरे टहलने का समय बदल गया था और मैं 8:00 बजे के करीब अपनी बालकनी में टहलती थी। दूध वाले से अब मेरी मुलाकात नहीं होती थी और नहीं उसका वह शब्द सलाम साहब बोल कर चली जाना नज़र आता था।
एक दिन वह सभी को दूध देता हुआ बाद में मेरे घर आया और पूछा,”मैडम आप सुबह अब बालकनी में टहलते हुए नहीं दिखायी देती है, टहला करिए इससे मुझे भी हिम्मत मिलती है”।
मैंने कहा ,”हाँ मेरी सोने के टाइम में कुछ तबदीलियाँ हो गई है,”वह चाहता था कि बैठकर मुझसे कुछ बातचीत करें लेकिन मुझे स्कूल जाना होता था समय नहीं मिलता था।
ऐसे ही धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था और मेरी लाइफ स्टाइल में परिवर्तन होता जा रहा था।
अब मैं रिटायर हो चुकी थी फिर भी सुबह उठने की आदत के अनुसार मेरी आंखें खुल जाती, पर मैं सोचती थी उठ कर क्या करूँगी? सभी बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर अपनी चॉइस के हिसाब से अलग अलग जगह सेटल हो गए थे। अतः सुबह उठने की कोई खास जरूरत नहीं थी।
ऐसे ही समय बीतता जा रहा था लेकिन मन में एक अफसोस होता था ये लेट सो कर उठने की वजह से, मैं वह सुहानी सुबह, वो सूर्य का उदय होने का समय, जब पूरा आसमान हल्का नारंगी नजर आता था और सूर्य एक बड़े खिले हुए सूरजमुखी के फूल जैसा नज़र आता था।

वह भोर में चिड़ियों का चहचहाना, ताज़ी और मदमस्त पवन का नर्तन करना और प्रकृति का एक अनोखा अंदाज जो तन मन दोनों को बसन्ती कर जाता था, वह अब मुझे नजर नहीं आता था।
ना सुबह उठकर घास में टहलना हो पाता था और ना ही उसकी वो चमकीली रजत बूँदें नजर आती थी। मुझे प्रकृति बहुत पसंद है मुझे ऐसा लगता है की प्रकृति ही बेरी गुरु है जो बहुत कुछ हमें सिखाती है।
एक दिन 10:00 बजे के करीब मेरे घर की कॉलबेल बजी और मैंने देखा की वही दूध वाला अपने हाथ में एक शादी का कार्ड लेकर खड़ा था। मैं बाहर निकली, बड़े अदब के साथ उसने मेरा पैर छुआ और अपने हाथ में लिया वह कार्ड मुझे देते हुए बोला,”मैम मेरे बेटे की शादी है 2 दिन बाद अब मैं उम्मीद करता हूँ कि आप जरूर आएगी।
ऐसे ही गेट पर खड़े होकर मैं उससे बात करने लगी।मैंने पूछा,क्या करता है तुम्हारा बेटा”? मैम वह आईएएस ऑफिसर हैं और असम कैडर में पोस्टेड हैं, एक सप्ताह पहले ही आया है। उसकी वाइफ भी आईएएस ऑफिसर है।दोनों ने ट्रेनिंग एक साथ की थी अब वो शादी कर रहे हैं। मेरा दूसरा बेटा डॉक्टर है वह अमेरिका के प्रैक्टिस कर रहा है।
मैं सुनकर दंग रह गई के एक दूध वाले ने अपने बच्चे को कैसे इतना पढ़ाया। मैं स्वयं को नहीं रोक पाई और मैंने पूछा,” रामपाल (यह दूध वाले का नाम था) तुमने अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई कैसे करवाई”, बड़ी नम्रता से उसने बोला,” मैं,मैंने बच्चों को वही दिया जो उनकी सेहत के लिए जरूरी था, वही भाव उसके मन में प्रफुल्लित होने दिया जिससे उनका भविष्य उज्वल हो और अनुशासन, उस तरफ भी मेरा बहुत ध्यान रहता था,उसके बिना तो कुछ भी अच्छा होना सम्भव नहीं था।
कभी कभी मेरे बच्चे भी डिमांड करते थे की उसकी थाली में बहुत अच्छा खाना होता है, उसके कपड़े बहुत अच्छे होते हैं, तो मेरा जवाब होता था हमेशा अपनी थाली पर ध्यान रखो क्या पता तुम्हारी थाली में कभी उससे अच्छा खाना, अपने व्यवहार पर ध्यान रखो क्या पता तुम्हारा व्यवहार तुम्हें इस लायक बना दे कि तुम्हारी व्यवहार कुशलता के लोग कायल हो जाए। बेटा केवल शान शौकत से जिंदगी आगे नहीं बढ़ती है।
मैं तो यूँही जी रही थी असली जीवन तो दूधवाले ने गुजारी है, जीना तो उसे आता है जिससे सब कुछ समेट कर के समाज को एक प्रोग्रेसिव फ्यूचर दिया। अभी तो जीने के लिए बहुत कुछ सीखना बाकी है।

अमृत बिसारिया

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