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मेसेंजर/लेख – सुनीता तिवारी

मैं पहले मैसेंजर हटा चुकी थी बहुत सारे मित्रों के आग्रह पर डाउनलोड
किया,ज्यों देखा,मैसेज का अंबार
मिला।
पढ़कर देखे,एक से एक शानदार,मजा भी आया ,किसी किसी पर गुस्सा भी आयी।
सबसे सुपर बात तो यह हुई कि एक साहब का मैसेज यह था कि किसी शादी में 42 साल आपको देखा था तबसे आप हमारी यादों में रहीं और मैं उस समय साधन न होने से कॉन्टेक्ट नहीं कर पाया,बस नाम और शहर का पता होने से फेस बुक पर देखकर आपको मैसेज कर रहा हूँ।
मैं आपको पहचान गया हूँ क्या आप मेरी FB पर फ्रेंड बनेगी?
मैंने बहुत सारी कविताएँ लिखी
हैं जो मैं आपको सुनाना चाहता हूँ।
मेरा पूरा न्यूरोमीटर हिल गया और सारे न्यूरॉन्स इधर उधर हो गए,दिमाग का दही जम गया।
मैं तीन बच्चों की अम्मा,
मैंने जबाव लिख दिया कि मुझे
आपके नाम की एक हिचकी
भी कभी नहीं आयी,ऐसे बहुत लोग मिलते है सबको याद रखना नामुमकिन है मुझे अब मैसेज ना करें।
उनका जबाब आया कि 42 वर्ष बाद ऐसा उत्तर पाकर मैं बहुत दुखी हुआ, खैर जैसी ईश्वर की इच्छा।
दूसरा पहलू यह है कि बहुत सारे अपने भी तो मिल जाते हैं जिनके साथ आपका अपनत्व होता है उनके दिखने से आप तरोताज़ा हो जाते हैं।
जो पसंद नहीं या जिनसे बात नहीं करना,जबाव न देना सही।
यह है मेरे मैसेंजर भाई की करामात, हैं तो बहुत प्यारे
पर मजबूरी में ब्लॉक और रिस्ट्रिक्ट को टच करना पड़ता है।

सुनीता तिवारी

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