लघुकथा – वीरवधू,– डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’

सौम्या आज बहुत खुश थी ।आज उसकी शादी उसके मनपसंद लड़के दीपक से होने जा रही थी । जिसे सेवा में मेजर पद प्राप्त हुआ था। दीपक बहुत बहादुर था ।कोई भी गलत बात बर्दाश्त नहीं कर सकता था ।कहीं कोई किसी लड़की को छेड़ता तो वह उससे लड़ जाता था ।दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हुई ।सुहागरात के बाद अगले ही दिन उसे पत्र मिला उसकी ड्यूटी युद्ध पर जाने के
लिए तैनात कर दी गई थी और उसे आज ही ड्यूटी ज्वाइन करना था । दीपक सौम्या के पास गया और बताया कि उसे आज ही जाना होगा ।सौम्या मन ही मन बहुत दुखी हुई, पर चेहरे पर मुस्कुराहट थी । वह बोली पहले देश की सेवा फिर कोई काम दूजा ।आप जाइए अपना कर्तव्य निभाइए । दीपक ने सौम्या को गले लगा लिया औरजल्दी-जल्दी सामान की पैकिंग कर वह चला गया ।कारगिल में युद्ध छिड़ा हुआ था । वहाँ बहादुरी से लड़ते हुए दीपक शहीद हो गया । समाचार सुन सब बहुत दुखी हो कर रोने लगे । तिरंगे में लिपटा हुआ दीपक का पार्थिव शरीर घर ले आया गया ।सौम्या ने खुद पर काबू रखते हुए घर के सारे लोगों को संभाला ।वह एक फौजी की पत्नी थी । अब उसे अपना कर्तव्य निभाना था । वीरवधू के साथ ही वीरांगना भी बनना था ।तभी उसे पता चला कि वह गर्भवती भी है ।उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई थी ,पर अपने आँसू पोंछते हिम्मत से काम लेते
हुए वह दिन भर काम करती रही ।सबके उसने आँसू पोछें ।राजकीय सम्मान के साथ उसके पति का शवदाह किया गया ।बाद में स्वर्गीय मेजर दीपक को “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया। सौम्या और उसकी सास दोनों गए और राष्ट्रपति से उन्होंने परमवीर चक्र को सिर नवा कर लिया । ऐसी वीर – वधू किसी वीरांगना से कम नहीं ।जब उसे बेटा हुआ ।उसने निर्णय कर लिया था कि वह इसे भी भारतीय सेना में भेजेगी । बेटा अंकित देश की रक्षा हेतु सदा तैयार रहेगा । आज सब सौम्या की क्षमता को नमन करते ‘वीरवधू” के नाम से उसको सम्बोधित करते हैं।
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’