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दुर्गा पूजा और नारी सम्मान — मंजू शर्मा

 

नवरात्रों के रूप में साल में दो बार हम देवी के अनेक रूपों को पूजते हैं। देवी ने स्त्री रूप में अपनी शक्तियों का आभास हर युग में कराया है। वो लोहा मनवाने में कभी पीछे नहीं हटी। —

शक्ति स्वरूपा देवी का रूप में कन्या का जन्म होता है।जिसे हम घर की लक्ष्मी कहते हैं। उसे प्रकृति कहा गया है और पुरुष को पूरक कहा गया है। पुरूष और प्रकृति के मिलन से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। लेकिन सृजन का अधिकार केवल नारी को है। क्योंकि वह धरा-सी सहनशील है । शारिरिक रूप से सक्षम, और स्वभाव से कोमल है। इस पूरी प्रक्रिया के लिए
न केवल उपयुक्त है, बल्कि माँ की छवि को दर्शाती है ।
कुछ भ्रमित लोग इन सब को न मान कर सोचते हैं कि सभी सांसारिक कार्य से चल रहा है।

आज की स्त्री ने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। एक गृहिणी से लेकर अंतरीक्ष तक जाने वाली भी नारी ही है। फिर
उसको सम्मान के लिए इतना संघर्ष क्यों करना पड़ता है?
क्यों वो अपने घर में अपमान का घूंट पीकर घुटती रहती है।

ऐसा अनेक घरों में देखा गया है दूर्गा जी की चौकी सजाते हैं। जागरण करते हैं। पूजा, आरती से खूब श्रद्धा दिखाते हैं लेकिन सम्मान की बारी आती है तब घर में रहने वाली साक्षात दूर्गा पर प्रहार करते हैं कभी शब्दों से तो कभी मारपीट से… और ये आज से नहीं सदियों से चला रहा है। आज भी हमारे समाज को पुरूष प्रधान ही माना जाता है। आखिर क्यों है लोगों की दोगली मानसिकता? क्यों आज भी पढ़ें लिखे लोग नारी को सम्मान देने में खुद को छोटा समझते हैं?
कहांँ कमी है और क्यों?
क्यों सारे दिन घर में सबकी देखभाल करने वाली स्त्री सम्मान की भूखी-प्यासी रहती है?
कुछ महिलाएं सारे दिन दूसरों के घरों में काम करती है और घर जाते ही…मार के साथ गाली-गलौच सहती है।
बड़ी दयनीय स्थिति है उन महिलाओं की… कभी-कभी मन विरोध करता है इस दिखावे से भरे समाज का…जो पंडालों में लाखों खर्च करते हैं और घर की देवी के लिए दो मीठे बोल भी नहीं। क्यों नहीं समझते लोग…स्त्री का हमारे समाज में, घर में, दिलों में जो विशेष महत्व है, इससे बेहतर प्रमाण क्या होगा? इनका सम्मान करों। घर की स्त्रियों में जो रिश्ते बसे हैं उनसे ही घर में खुशियां है। नहीं तो ये घर दीवार और जीवन श्मशान जैसा है।

इसी का नतीजा है आज पढ़ लिखकर स्त्रियां खुली हवा में आशियाना चाहती है। स्वतंत्रता और समानता का हक़ मांगने की लड़ाई में जिम्मेदारियों के साथ अपने कर्तव्यों को भी भूलती जा रही है। थोड़ी समझ की कमी और ‘मैं’की भावना
संस्कारों का हनन नजर आने लगा है। ये बात सच्ची है समाज में हर तरह के लोग हैं और जो खुद का सम्मान चाहते हैं और सम्मान को समझते हैं वो किसी का अपमान करने के बारे में नहीं सोच सकते। मांँ! की पूजा आराधना हमें यही सीख देती है एक दूसरे का दिल से सम्मान करें। दिखावे और आडंबरोंसे बचे। श्रद्धा से पूजा, आराधना करें।सबकी खुशी में अपनी खुशी देखें। जीवन सुखमय बन जाएगा।

मंजू शर्मा

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