माँ की बात तब समझी जब खुद माँ बनी — अनामिका “निधि”

माँ की बातों का महत्व तब तक हमें पूरी तरह समझ नहीं आता जब तक हम खुद माँ न बन जाएँ। बचपन में जब माँ हमें डाँटती, समझाती या कोई बात दोहराती, तो हम उसे सिर्फ एक सख्ती या अजीब सी समझ के रूप में लेते थे। पर जब वही स्थिति खुद पर आती है, तो उन शब्दों का असली मतलब और गहराई सामने आती है।
बचपन में माँ की डाँट को हम अक्सर गलतफहमी के रूप में लेते थे, जैसे कि “क्यों इतनी सख्त है?” या “इन्हें समझ नहीं आता क्या?” लेकिन जब खुद माँ बनी, तब जाकर हमें एहसास हुआ कि माँ का हर शब्द प्यार, चिंता और अनुभव की गहराई से आता है। यह शब्द सिर्फ आदेश नहीं थे, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी सीख थे।
जब हम अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, तब हमें माँ के उस स्नेह, धैर्य और समर्पण का असली अर्थ समझ में आता है। बच्चों को सही दिशा में ले जाने के लिए माँ का जो संयम, बलिदान और अथक प्रयास होता है, वह हर माँ की कहानी है।
हमने कभी सोचा भी नहीं था कि छोटे-छोटे फैसले, जैसे बच्चों के लिए सही खाना बनाना, उनकी पढ़ाई में मदद करना, या उनकी भावनाओं को समझना, कितने कठिन और जिम्मेदारी से भरे होते हैं। माँ ने जो भी बातें हमें सिखाईं, वह सिर्फ शब्द नहीं थीं, बल्कि जीवन के सबसे बड़े सबक थे।
अब जब हम खुद माँ बन गई हैं, तब जाकर माँ की बातों का असली मतलब समझ में आता है। हर सख्त शब्द के पीछे एक गहरी चिंता और प्रेम छुपा था। माँ के बिना हमारे जीवन में वह मिठास और सुकून संभव नहीं था।
इसलिए, जब हम माँ बनते हैं, तब जाकर ही समझ पाते हैं कि माँ के बिना जीवन कितना अधूरा था। माँ की बातों की कीमत और उनके प्रेम की गहराई हम तब समझते हैं जब हम खुद उस भूमिका में होते हैं।
“माँ की बात तब समझी जब खुद माँ बनी,” यह एहसास हर बेटी के दिल में एक खास स्थान रखता है, क्योंकि माँ का प्रेम असीम है और उनकी बातें जीवन भर के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।
अनामिका “निधि”