जवान या बूढ़ा किसान — कंचन वार्ष्णेय कशिश

बहुत ही प्रसन्न होकर तिरासी साल का वह बूढ़ा किसान गेहूं की बालियों को हँसिये से काटकर इकट्ठा कर रहा था …. फिर बड़े सलीके से उसने उसका गट्ठर बनाया …! अपने सिर पर गमछे की पगड़ी डालते हुए उसने पड़ोसी किसान के बेटे से कहा – बेटा , सिर पर यह बोझा रखने में मदद करोगे ? लड़के ने हामी भरी और बोझा उठाने में मदद करने के लिए आगे बढते हुए कहा – दादा , इस उम्र में क्यों काम करते हो , अब तो आपके आराम के दिन हैं ….वृद्ध किसान मुस्कुराते हुए बोला – धरती और फसल के साथ गहरा रिश्ता जुड़ा है बेटा , कैसे तोड़ दूँ ? सात साल की उम्र से पिता के साथ खेतों में काम करता आया हूँ । लहलहाते फसल के साथ जवानी हर बार लौट आती है , कभी पता ही नहीं चलता कि बूूढा हो गया हूँ ,, ये धरती माँ है न , अपने जादू से बच्चा बना के रखी है । हमेशा उपहार देकर काम करा ही लेती है । लड़का खेत में खड़ा उसे देखता रहा और वह बूढ़ा व्यक्ति किसी जवान व्यक्ति से अधिक खुशी खुशी सिर पर बोझा लिए बड़े आराम से खलिहान की ओर जा रहा था….!!
कंचन वार्ष्णेय कशिश