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तब और अब—(लेख) — भोला सागर

 

बात अपने ज़माने की कर रहा हूँ। जब नौवीं-दसवीं कक्षा में पढ़ता था। लड़के-लड़कियाँ सब एक साथ विद्यालय आते-जाते थे। हमलोगों में किसी तरह की हलचल या उतावला
-पन नहीं दिखता था।प्रेम की ख़्वाहिश ही नहीं जागती थी। और न ही प्रेम से भिज्ञ थे। जैसे प्रेम के बारे कुछ पता ही नहीं हो। किसी तरह की सुगबुगाहट या कुलबुलाहट नहीं होती थी।

आज की पीढ़ी तो उत्तेजना से भरी होती है। शीघ्र उत्तेजित हो जाती है। अपने ज़ज्बात पर काबू रख नहीं पाती। अब लड़के-लड़कियाँ साथ
-साथ चलना मुश्क़िल है। शीघ्र ही आकर्षण की चपेट में आ जाते हैं। बहक कर ज़ज्बात ही खो बैठते हैं। हाँ,इसका भी एक बहुत बड़ा कारण है। अभी उत्तेजित करने वाली चीज़ों का बहुत ज्यादे सेवन होने लगा है। मोबाइल,टी वी पर उत्तेजित दृश्य देख रहे हैं।

तब के ज़माने में मोबाइल,टीवी का उतना प्रचलन नहीं था। उत्तेजित पदार्थ का सेवन नहीं के बराबर होता था।

आज की पीढ़ी के हर हाथ में मोबाइल है। हर घर में टी वी है। रोज़ मुर्गे-अंड़े का सेवन हो रहा है।आपत्ति
-जनक दृश्यालोकन करते। इसीलिए
अपनी आपा खो बैठते।

कभी-कभी भावावेश भी देखने को मिलता। अपने माँ-बाप को नहीं पहचानते। आवेश में ख़ुदकुशी भी कर बैठते।

बच्चे,युवा या प्रौढ़ सब पर आज मोबाइल का असर पड़ा है। जिसके कारण आज ज्यादातर लोग बिगड़ रहे हैं।

असल में,आज गलत लत के कारण मोबाइल का गलत उपयोग कर रहे हैं। जिससे सभी राह भटक रहे हैं।

भोला सागर
चन्द्रपुरा,बोकारो,झारखंड

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