कहानी: मेरी बालकनी की गौरैया — अनीता चतुर्वेदी

शाम की नरम रोशनी बालकनी में बिखरी हुई थी, और मैं अपनी चाय की प्याली के साथ खिड़की से बाहर झांक रही थी। आकाश पर हल्के बादल तैर रहे थे, जैसे किसी पुराने चित्रकार की ब्रश की हल्की-सी छाया।
अचानक, एक हल्की सी चहचहाहट मेरे कानों तक पहुंची। यह आवाज मुझे बहुत परिचित लगी, जैसे किसी बीते समय की यादें मुझे फिर से गले लगाने आई हों। वह छोटी सी गौरैया, जो कभी मेरी बालकनी में अपना घर बनाने आई थी, आज भी मेरे दिल में उसी तरह बसी हुई थी, जैसे पहली बार जब मैंने उसे देखा था।
यह कहानी एक आम सी दिखने वाली घटना की नहीं है, बल्कि यह एक अनकहे रिश्ते की कहानी है, जिसे मैंने अपनी बालकनी में बसते हुए देखा था।
कभी-कभी, हम अपने रोजमर्रा के जीवन में इतनी व्यस्त हो जाते हैं कि आसपास की छोटी-छोटी चीजों को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन उस दिन मेरी आंखों में एक अदृश्य रूप से बसी हुई गौरैया ने मेरी दुनिया को बदल दिया था। यह बात एक ठंडी सुबह की है, जब मैं अपनी बालकनी में बैठी हुई थी और चाय के कप में तैरते हुए सफेद बदल से तैरते भाप के लहरों के साथ, अपने विचारों में खो गई थी।
उस दिन मैंने देखा, एक छोटी सी गौरैया धीरे-धीरे मेरी बालकनी में उतरी। उसकी आँखों में एक विशेष बेचैनी थी, जैसे वह किसी गहरी सोच में डूबी हो या किसी खोज में लगी हो। उसकी चहचहाहट में कोई अनकहा संदेश था, जो मुझे समझने में देर नहीं लगी।
वह गौरैया मेरी बालकनी में अब रोज ही आने लगी, हर दिन थोड़ी देर के लिए बैठती और फिर उड़कर चली जाती। पहले तो मुझे यह केवल एक सामान्य घटना लगी, लेकिन कुछ ही दिनों में मैंने पाया कि उसकी चहचहाहट, उसकी हल्की सी बेचैनी, और उसका लगातार कोई सामान्य बात नहीं थी,बल्कि उसे तलाश थी एक सुरक्षित स्थान की।
अब तो उसका आना-जाना, मेरे जीवन का हिस्सा बन गया था। और एक दिन, मैंने देखा कि वही गौरैया, जो पहले कभी दूर से बैठा करती थी, अब बालकनी में लगे उस घने पौधे की ओर बढ़ी। उसके पंखों की हल्की सी सरसराहट में एक गहरी गंभीरता थी, जैसे वह अपने घर की तलाश कर रही हो।
धीरे-धीरे, उसने पौधे के नीचे एक छोटा सा घोंसला बनाना शुरू किया। अपनी छोटी सी चोंच से डालियाँ और तिनके उठाती, वह एक कलाकार की तरह अपना घर संवारने में जुटी हुई थी। मुझे यह देखकर एक अद्भुत शांति का अहसास हुआ। जैसे प्रकृति का कोई रहस्य मेरे सामने खुल रहा हो, जैसे उसने मेरी आँखों में अपनी छोटी सी दुनिया बसा ली हो। मैं चाहकर भी उसका ध्यान भंग नहीं करना चाहती थी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ कि यह उस गौरैया का निजी प्रयास था, और मुझे उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
कुछ ही दिनों में, उसके घोंसले में अंडे दिखाई देने लगे। मुझे उन अंडों के बारे में बहुत चिंता हुई। क्या वे सुरक्षित रहेंगे? क्या घोंसला पर्याप्त रूप से सुरक्षित होगा? एक माँ की तरह, मेरी नजरें हर समय उस पौधे पर बने घोंसले पर जमी रहतीं। मेरा मन बार-बार घबराता, क्या उन नन्हे अंडों को गर्मी मिलेगी? क्या वे बाहर निकलेंगे? और फिर, वह दिन आ ही गया।
घोंसले से छोटी-छोटी चूजों की आवाजें आने लगीं। पहली बार जब मैंने उन नन्हे चीजों की चहचहाहट सुनी, तो एक असाधारण खुशी का अहसास हुआ। जैसे जीवन का एक नया रूप, एक नया संसार मेरे सामने आकार ले रहा हो। धीरे-धीरे, उन चूजों ने अपनी आंखें खोलीं और उनकी छोटी-छोटी चोंचें बाहर झांकने लगीं। उनका उत्साह, उनका मासूम संघर्ष, मुझे बहुत कुछ सिखा गया था। अब वे चूजे मेरे जीवन का हिस्सा बन गए थे। उनकी चहचहाहट मेरे दिल के कोने-कोने में गूंजती थी, जैसे मेरे मन का हर एक कोना उन नन्ही चहचहाहटों से महक रहा हो।
समय का पहिया हमेशा की तरह घूमता रहा, और चूजे धीरे-धीरे बड़े होते गए। अब वे घोंसले तक सीमित नहीं थे, वे मेरी बालकनी के हर कोने में उड़ते थे। कभी मेरे पास बैठते, कभी खिड़की पर बैठ बाहर झांकते, कभी बिस्तर पर कूदते हुए दिखते। मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि मैं भी उनके साथ एक अजीब सी रिश्तेदारी में बंध गई हूं, जैसे वे मेरे बच्चे हों।
मैंने उनकी देखभाल करनी शुरू कर दी थी। उन्हें दाना-पानी देने का काम भी मैंने अपना कर्तव्य मान लिया। उनकी नन्ही-नन्ही खुशियाँ अब मेरी दुनिया का हिस्सा बन चुकी थीं।
लेकिन समय की गति ने फिर अपना काम किया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उनका मन अब बालकनी की दुनिया से बाहर उड़ने मचलने लगा था।
एक दिन, जब मैं खिड़की से बाहर देख रही थी, मैंने देखा कि वे चूजे अब नीले आसमान में उड़ने को आतुर हो रहे थे। उनके छोटे-छोटे पंख आकाश की ओर उड़ते हुए मुझे अलविदा कह रहे थे। मेरी आँखें उनकी उड़ान में खो गईं। धीरे-धीरे वे नीले आकाश में खो गए और फिर कभी वापस नहीं आए।
मेरी बालकनी अब सुनसान हो गई थी। अब न उनकी चहचहाहट थी, न उनकी मासूमियत। सब कुछ मानो नीरस हो गया था। लेकिन फिर भी, उनकी यादें मेरे दिल में आज भी सजीव हैं। वह छोटी सी गौरैया और उसके बच्चे उनकी चहचहाहट, उसके साथ बिताए गए वो छोटे-छोटे पल, मेरी यादों में हमेशा जीवित रहेंगे।
आज भी, जब मैं अपनी बालकनी में बैठती हूं, तो वह गौरैया और उसके चूजे मेरे दिल में एक अदृश्य खुशबू की तरह बस जाते हैं। हां जानती हूं वे अपनी उड़ान भर चुके हैं, लेकिन उनका प्यार, उनका संघर्ष, और उनकी मासूमियत मेरी यादों में आज भी बसी हैं।
वे लौटकर नहीं आएंगे, यह मैं जानती हूं, लेकिन उनका छोटा सा संसार हमेशा मेरे मन के आंगन में जीवित रहेगा। उनके बिना, मेरी बालकनी अब चुप सी है, लेकिन उनकी यादों से सजी यह जगह हमेशा मेरी दुनिया का हिस्सा बनी रहेगी।
स्वरचित
अनीता चतुर्वेदी