लघुकथा– गंगा स्नान — सपना बबेले

शीला के परिवार में एक बेटा और एक बेटी है।
बेटा सोनू छोटा है और बेटी का सोनम है।
शीला बहुत ही मेहनती और ईमानदार थी ,उसका पति बिल्कुल
काम के प्रति उदासीनता से भरा हुआ था।
जहां बैठा तो बैठा,घर का कोई काम ठीक से नहीं करता था।
और किसी से व्यवहार भी ठीक नहीं था।
शीला बहुत चिंतित रहती कि बेटी बारहवीं पास हो गई है।
अब उसकी शादी कैसे होगी,पैसा भी नहीं है और सोनम के पिता को कोई चिंता भी नहीं है। क्या करें इसी चिंता में डूबीं रहती।
खेती का काम करती और भगवान को भजती रहती।
भगवान से कहती हैं प्रभु बेटी भी दी और ग़रीबी भी।
मैं क्या क्या- संभालूं, कहा जाऊं,घर वर ढूंढने।
एक दिन सोनम के मास्टर जी घर पर आए और बोले सोनम की शादी नहीं करनी है क्या। शीला रोने लगी और बोली मास्टर जी
कैसे करें सोनम की शादी घर में खाने के लाले पड़े हैं।
सोनम के पिता तो कोई फ़िक्र ही नहीं करते। मैं अकेली कहां जाऊं।
मास्टर जी बोले आप घर और वर देख लीजिए।
शादी तो सम्मेलन में हो जाएगी एक रुपए का खर्चा नहीं है।
मेरे गुरु जी हर बर्ष गरीब कन्याओं के विवाह संपन्न कराते हैं।इस बार अक्षय तृतीया पर विवाह सम्मेलन का आयोजन है।
एक फार्म भरकर अपने परिवार की जानकारी दे दो और फिर
घर वर की तलाश करो।
शीला बहुत खुश हो गई , अपने मायके में संदेश भेज दिया।
भाईआया और कुछ रिश्ते की जानकारी भी लाया।
बातचीत हुई लड़के वाले गांव में मंदिर में सोनम को देखते ही खुश हो गए और सम्मेलन में शादी को भी राजी हो गए।
अक्षय तृतीया के दिन सोनम की शादी गुरु कृपा से संपन्न हुई।
जरुरत का दान दहेज भी संस्था द्वारा उपहार स्वरूप दिया गया।
शानदार विदाई समारोह संपन्न हुआ।
शीला अपने परिवार और रिश्तेदारों के संग अपने घर लौट आई।
बेटी अपने ससुराल चली गई। अच्छा घर अच्छा वर मिला।
शीला कहने लगी आज तो ऐसा लगता है जैसे गंगा नहा ली।
सब लोग शीला के आत्मविश्वास को देखकर दंग रह गए।
शीला का भगवान के प्रति समर्पित होना भी बहुत हौसला देता था।
इसे कहते है मित्रों गंगा नहाना।
सपना बबेले