चाय के बहाने, — अलका गर्ग

बहुत मज़ेदार क़िस्सा याद आ गया…
मेरी सासू माँ को चाय पीने का बड़ा शौक़ था।दिन भर में थोड़ी थोड़ी करके आठ दस बार चाय पी लेतीं थीं ।ससुर जी से इस बात को लेकर अक्सर नौंक झोंक होती थी क्योंकि वे दिन में सिर्फ़ दो बार ही चाय पीते थे।
मुझे चाय पसंद थी पर छोटी उम्र और मायके में मुझे चाय न दिये जाने के कारण मुझे आदत नहीं थी।वे जब भी चाय पीतीं तो ससुर जी की डाँट से बचने के लिए दो घूँट मुझे भी दे देतीं तो वे कुछ नहीं बोल पाते बस यही कहते अपने साथ बच्ची को भी बिगाड़ रही हो।
एक दिन हम दोनों बाज़ार जाने वाले थे तो सासू माँ ने कहा जल्दी से चाय पी कर चलते हैं दुकानें तो देर से खुलेंगी तो निर्मला (दोस्त) के घर एक घंटे बैठ कर चाय पी कर फिर चलेंगे।बहुत दिन से बुला रही है।
मैंने कहा चाय वहीं पी लेंगे घर में क्यों देर करें।फिर एक घंटे में ही दो बार चाय पीनी पड़ेगी।बेमन से सासूमाँ मान गईं।वहाँ पहुँचे तो बड़ा था ताला हमें मुँह चिढ़ा रहा था जैसे कि…बड़े आये चाय पीने बोल रहा हो।
मोबाइल का जमाना नहीं था और फ़ोन भी सभी घरों में नहीं होते थे तो बिना खबर ही हम पहुँच गए थे।
सासू माँ का चेहरा बुझ गया फिर बोलीं अरे सरोज भी तो बहुत बुला गई थी जब हमारे घर आई थी।चलो निकले ही हैं तो उसी के घर चलते हैं वहीं से चाय पी कर बाज़ार चलेंगे।
दूसरा रिक्शा पकड़ कर हम दोनों सरोज आंटी के घर पहुँचे।दोनों सहेलियाँ मिल कर खूब खुश हुईं।बातों में समय का ध्यान ही नहीं रहा फिर आंटी ने बहू को आवाज़ लगाई कि कुछ खाने पीने को लाओ।
बहू ने आ कर पूछा—क्या लेंगी आंटी शरबत,लस्सी,जूस या शिकंजी…
हे भगवान यह क्या ??चाय का तो उनकी लिस्ट में नाम ही नहीं था।
सासू माँ ने शर्म छोड़ कर बोल ही दिया हमें तो बेटा चाय पिला दो…
अब वे दोनों सास बहू एक दूसरे का मुँह देखने लगीं।दरअसल कुछ देर पहले ही उनकी गैस ख़त्म हो गई थी जो एक दो घंटे बाद आने वाली थी।
मैंने तो बड़े शौक़ से और सासू माँ ने बड़े बेमन से लस्सी पी ।देर हो गई थी तो हम बाज़ार ना जा कर घर ही आ गये।
फिर तो सासू माँ ने दो कप चाय बना कर पी।और हिदायत भी दी कि आगे से घर से चाय पी कर ही कहीं जाना है वहाँ मिलेगी तो दोबारा पी लेंगे या मना कर देंगे।
हा हा हा …उनकी इसी हिदायत का हम उनके जीवन काल में पालन करते रहे..
अलका गर्ग, गुरुग्राम