लेख—- “जरूरत” ” — एन .के . त्रिवेदी

क्या किसी चीज की जरूरत है, क्या कोई आवश्यकता है? ये सवाल सबके मनमे उठता है। ऐसा नहीं हुआ होगा कि कोई व्यक्तिने ईस शब्द का उपयोग नहीं कीया होगा। क्योंकि जरूरत शब्द केवल व्यक्ति की आवश्यकता को परिभाषित नही करता है, वो सामाजिक, आर्थिक बंधन से भी जुड़ा है। जो हर स्थिति में और स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। इसकी तीव्रता भी बदलती रहती है। हम अक्सर जरूरत के बारेमे सोचते रहते हैं की मुझे इस बात की बहुत जरूरत है जो मिल जाये तो अच्छा। हम अक्सर सोचते है उसे उस बातकी क्या जरूरत थी जो उसे आसानी से मिल गई। हमे इस शब्दों को बार बार सुनने को मिलते है और इस बात को व्यापक रूप से देखा भी गया है की हर कोई व्यक्ति जरूरत के बारे मे कुछ न कुछ सोचती रहेती है।
अंग्रेजी में एक कहावत है “आवश्यकता हर आविष्कार की माँ है।” समय समय पर आवश्कयता बढ़ने पर हर चीजकी आवश्यकता उत्पन्न होती है ओर नई खोजों, नए उत्पादों और चीजों के लिए शोध और खोजें की जाती है। हम देख रहे है की औद्योगिक क्षेत्र, परिवहन में जबरदस्त क्रांति हुई है। इन्टरनेट ओर सोशियल मीडिया का व्याप बढ़ने से पृथ्वी का क्षेत्र छोटा और छोटा होता जा रहा है। ऐसा प्रत्येक खोजों के लिए होता है। यह माना जा सकता है कि इसकी आवश्यकता अनुसंधान के साथ मौजूद थी, जैसे कि रोशनी, हवाई जहाज, समुद्री वाहन, आदि।
दूरसंचार, इंटरनेट, उपग्रह के साथ आभासी दुनिया ओर दुनिया की बीच की दूरी कम होती जा रही है। ब्रह्मांड के लिए अनुसंधान और अन्वेषण शुरू हुआ है। जैसे -जैसे हम सही या गलत जरूरत को बढ़ाते गए, अशांति की व्यापकता ओर असंतोष भी बढ़ता गया। आदमी यांत्रिक और आत्म -निहित हो गया हो ऐसा लगता है।
हमने अपनी जरूरते तो हासिल कर ली। लेकिन एक ही समय में, पृथ्वी के सीमित संसाधनों को भूल गए, पृथ्वी को छोड़ आज अन्य ग्रहों पर ब्रह्मांड में जीवन खोजने की तलाश मे निकल पड़े है। जरूरत स्वचालित रूप से उठाई जाती है और फिर हम उसी जरूरत को पूरा करने के लिए टूट जाते हैं, लूंट जाते है।
एक बात निश्चित है। बंद नदी का पानी भी बर्बाद हो जाता है। इसलिये हर नई शोधका मानव जीवन को बहने के लिए एक नये आविष्कार की आवश्यकता होती है। इसके लिए पहली शर्त यह है की जैसे -जैसे जरूरत बढ़ती है, स्थिति और परिस्थिति में बदलाउ भी आता है ओर कभी कभी मानव जीवन प्रभावित भी होता है। हर व्यक्तिको कोई न कोई चीजकी जरूरत रहती है। जब जरूरत का व्यवसायिक और उचित उपयोग होता है तो जरूरत भी सोने की खुशबू की तरहा अच्छी लगती है मगर ये व्यक्ति ओर परिस्थितीओ पर निर्भर करता है। जरूरत हमारा साथ कभी नही छोडती, वो तो जन्म से अंत तक साथ रहती है ये एक सनातन सत्य है।
नरेंद्र त्रिवेदी …
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