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प्रहरी मंच राजस्थान इकाई की ऑनलाइन मासिक काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन

 

प्रहरी काव्य मंच की राजस्थान इकाई की ऑनलाइन मासिक गोष्ठी का आयोजन मंच के संस्थापक अध्यक्ष नरेश नाज, वैश्विक अध्यक्ष शालू गुप्ता और राष्ट्रीय महासचिव ममता झा के सानिध्य में संपन्न हुआ। गोष्ठी में राजस्थान के साहित्यकारों के साथ-साथ केरल इकाई की अध्यक्ष चंद्रलता एवं कर्नाटक इकाई की अध्यक्ष विनीता लवानियां सहित कुल 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

गोष्ठी की शुरुआत राजस्थान इकाई की अध्यक्षा कंचना सक्सेना द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। इसके पश्चात नरेश नाज ने देशभक्ति से ओतप्रोत अपनी रचना “मेरे प्यारे देशवासियों सुनो देश का हाल…” सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया। ममता झा ने राणा सांगा पर आधारित ओजपूर्ण रचना “गौरव है मेवाड़ के राणा सांगा नाम” प्रस्तुत की।

वरिष्ठ कवि रामकिशोर ने भक्ति रस से सराबोर रचनाएं “नमन करूं मां शारदे…” और “आयोजक श्रोता सभी बोलें जय श्री राम” सुनाई। ज्योत्सना सक्सेना ने भीषण गर्मी में पक्षियों की पीड़ा पर आधारित रचना “पंछी तरसे जल बिना…” प्रस्तुत कर सभी को संवेदनशील किया।

पुलिस विभाग में एसीपी पद पर कार्यरत आलोक गौतम ने पिता पर लिखी भावभीनी रचना “बचपन से पचपन तक देखो पिता ने साथ दिया…” सुनाकर श्रोताओं को भावुक कर दिया।

उषा शर्मा ने अपनी रचना “तुमसे नजर मिली मैं ठहर सी गई…” के माध्यम से प्रेम की कोमल अनुभूतियों को स्वर दिया। कमलेश चौधरी ने झलकारी बाई के शौर्य को केंद्र में रखते हुए रचना सुनाई। पुष्पा माथुर ने यशोधरा के अंतर्मन को “सखी कुछ कमी मुझ में ही रही होगी…” जैसी रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया।

मीता जोशी की रचना “कभी मौन तो कभी मुखर होना भी जरूरी है” ने मनोवैज्ञानिक पक्ष को उजागर किया। उषा वर्मा ‘वेदना’ ने जीवन को एक दिव्य वरदान मानते हुए दर्शन से भरपूर रचना प्रस्तुत की।

शशि सक्सेना ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में गहरी बात कहते हुए “सोचता हूं चाय की एक टपरी लगा लूं…” सुनाया। रंजीता जोशी ‘तुलसी’ ने नशा जैसी सामाजिक समस्या को रचना के माध्यम से प्रभावशाली अंदाज में प्रस्तुत किया।

कमलेश शर्मा ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए रचना “शहीद को सलाम है…” सुनाई। सुनीता त्रिपाठी ने राजस्थानी लोक भाषा में रचना “बालम ओ मतवालो…” प्रस्तुत कर क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान बढ़ाया।

सुझाता पुरोहित ने जीवन के अनमोल पलों को संजोने का संदेश देती रचना “गुल्लक थोड़ा-थोड़ा रोज जमा कर रही हूं…” सुनाई। सीमा लोहिया ने प्रेरणादायक पंक्तियों के माध्यम से कहा “मिलेगी मंजिलें पर हौसला जरूरी है…”।

विनीता लवानियां ने सामाजिक चेतना जगाते हुए कहा “मत भागो पैसे के पीछे… अपनों से अपने छूट गए तो तेरा क्या होगा।” नीता भारद्वाज ने संबंधों में स्नेह बनाए रखने की जरूरत पर बल दिया।

राजस्थान इकाई की सचिव अंजु सक्सेना ने व्यंग्य के माध्यम से “जिनके कंधों पर रखकर बंदूक चलाई जाती है” जैसी मारक पंक्तियां प्रस्तुत कीं। कंचना सक्सेना ने बदलते मानव चेहरों की संवेदनशील प्रस्तुति दी।

शालू गुप्ता ने सभी प्रतिभागियों की सराहना करते हुए बचपन की मित्रता पर आधारित रचना सुनाई — “वो जिसकी गाली सुनकर भी खिल जाती है मुस्कान…”।

गोष्ठी का संचालन राव शिवराज पाल सिंह ने किया, जिन्होंने अंत में अपनी चुटीली रचना “मेरी कविताओं में ना सुर है ना ताल…” के माध्यम से समापन किया। आभार ज्ञापन चंद्रलता ने किया।

गोष्ठी ने न केवल विविध विधाओं की रचनाओं को मंच प्रदान किया, बल्कि सामाजिक, पारिवारिक और राष्ट्रीय भावनाओं से भी जुड़ाव कायम किया।

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