नौसिखिया लोग — उर्मिला पाण्डेय

अधजल गगरी छलकत जाय।
मैंने फेसबुक पर आनलाइन काव्य पाठ करके यह अच्छी तरह से जान लिया कि सभी जगह नौसिखिया लोग ज्यादातर अपनी छांटते हैं यह भी पता नहीं कि इण्टर क्यों लिखा जाता जबकि बोलते न्, हैं और अपनी अपनी कहे जाते हैं पता कुछ भी नहीं। हिंदी के स्वर पता नहीं होंगे कि कितने होते हैं व्याकरण में और अपने को काशी का विद्वान बताते हैं। इनसे यह पूछिए कि तुम्हें फुर्सत है मंच चलाने की चला रहे हो फिर दूसरे में कमी क्यों निकालते हो पहले उसपर विचार कीजिए।
विचार करके विचारणीय तर्क़ दीजिए।तब तो कुछ निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
कविता के क्षेत्र में तो आज-कल सभी कवि बन गये हैं मैंने देखा कि शब्दों का ज्ञान नहीं अच्छी तरह से कवि बन गये हैं। कवि की भावना प्रधान होती तभी वह कुछ लिखता है।लिखते समय जो शब्दावली उचित होती है लय और मात्राओं के हिसाब से वही शब्द उचित होता है।
ऐसे ही नौसिखिया सभी जगह होते हैं घर का कामकाज करने में सिलाई कढ़ाई बुनाई लेखन कला में,आर्ट में जो थोथा होगा वही ज्यादा बजेगा। कहेंगे कि अमुक कार्य ऐसे करते हैं कि मेरे काम में कोई कमी नहीं निकाल सकता।मेरी समझ में नहीं आता कि मुझसे जो पूछता है उसको में सही सही उदाहरण सहित बताती हूं परंतु जो सही शब्दावली को भी ग़लत बताए उसका तो भगवान ही मालिक है। मैं ग़लत हो सकती हूं परंतु उसका प्रमाण दीजियेगा। मैं प्रमाण सहित बताती हूं। बिना प्रमाण के नहीं।
मुझे भी एक दो मंचों पर ऐसे ही नौसिखिया मिले क्या कहूं उनके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता।
कहावत भी है कि,थोथा चना बाजे घना।,,अधजल गगरी छलकत जाय।,
जो घड़ा आधा भरा होता है वही छलकता है,जो चना खोखला होता है वही ज्यादा बजेगा।
वही हाल समाज में भी है।
सभी क्षेत्रों में नौसिखिया अवश्य अपनी लगाए रहते हैं आता जाता कुछ नहीं फिर भी अपने को बहुत बड़ा मान लेते हैं। ग़लत तो तब होता है।जब किसी सही बात को ग़लत फहराते हैं।
इनको पढ़ाने के लिए एक विद्यालय खोलना चाहिए जिससे उनको सही बात का सही शब्दावली का ज्ञान हो सके।
उर्मिला पाण्डेय कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश।