नारी की भूमिका — डॉ मीरा कनौजिया” काव्यांशी”

कभी वह रागिनी बनकर ,कभी वह गृह स्वामिनी बनकर।
कभी मां बहन बेटी, कभी पति की अर्धांगिनी बनकर।
माता का संसार में सर्वोच्च समर्पण,भाव बच्चों के प्रति।
छलकती ममता की गागर, हृदय में वात्सल्य ममता गति।
उदर में शिशु को, नो माह रखकर करती है पालन पोषण।
हर परेशानियों से बचाती है बचती हर संभव उसका शोषण।
झेलकर प्रसव पीड़ा, वेदना कष्ट को सहकर, शिशु को जन्म।
पेट में शिशु को रखकर, हर चीज सिखलाती शिक्षा का मर्म।
मां की ममता अतुल, संसार से सबसे , अलग न्यारी है मां।
माता से बढ़कर जगत में कोई नहीं, स्वर्ग से बढ़कर मेरी मां।
बच्चों पर आंच नहीं आने देती कभी भी, बन जाती सिंहनी।
ममता की गागर छलकती हमेशा ममता बनी कोमलांगिनी।
शिक्षा देती पाठ पढ़ाती,बच्चों को अपने नैतिकतासिखलाती।
मार्गदर्शिका है माता हर पल हर संकट से बच्चों को है बचाती।
संसार सभी माता को करते हैं हाथ जोड़कर हम सब नमन।
ईश करें मात को नमन, क्योंकि मातने ईश भीको दियाजन्म।
लोरीगूंजती,मातृसम,वात्सल्य,लुटा शिशु प्रसविनी कोकिला।
जननीमृदुला, दुष्टदलन हेतु पाषाण, सम ह्रदयाधारित रुद्रता।
हे! माततुझे प्रणाम,ईशजन्मदात्री,वंश मर्यादित,पालन नम्रता।
स्वआत्म सम्मान हेतु,थाम शस्त्र ,हनन न हो, मम दुहिता का।
कलंकित शीश ,पृथक करदिया धड़, हनन न स्त्री शुचिता का।
डॉ मीरा कनौजिया” काव्यांशी”
स्वरचित मौलिक रचना