रामायण की कथा भजन के माध्यम से मेरे शब्दों में -7 — रूपल दवे “रूप”

अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने,
मिथ्या दोष लगाया,
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।
इस लाइन में कहा गया है की अवध में एक ऐसा दिन आया निष्कलंक यानी बेदाग या जिस पर कोई कलंक ना हो ऐसी सीता पे प्रजा ने मिथ्या यानी जूठा दोष लगाया।अवध में ऐसा एक दिन आया।
चल दी सिया जब तोड़ कर,
सब नेह नाते मोह के,
पाषाण हृदयों में,
ना अंगारे जगे विद्रोह के।
इस में कहा गया है की जब सिया मोह के सभी रिश्ते नाते छोड़कर कर चली गई तब पाषाण हृदय यानी जिसका हृदय अत्यंत क्रूर बन गए हो ऐसे व्यक्ति,फिर कहा है कि ना ही अंगारे जगे विद्रोह के यानी किसी के दिल नहीं पिगले।
ममतामयी माँओं के आँचल भी,
सिमट कर रह गए,
गुरुदेव ज्ञान और नीति के,
सागर भी घट कर रह गए।
तत्पश्चात कहा गया है कि ममता से भरी माताओं के आँचल भी सिमट कर रह गए यानी वो भी कुछ नहीं कर पाई और गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर माने जाते है वो भी चुप बैठे सब कुछ देखते रहे कोई कुछ नही बोला।
ना रघुकुल ना रघुकुलनायक,
कोई न सिय का हुआ सहायक।
मानवता को खो बैठे जब,
सभ्य नगर के वासी,
तब सीता को हुआ सहायक,
वन का इक सन्यासी।
फिर कहा है कि ना रघुकुल और ना ही रघुकुलनायक यानी प्रभु श्री राम कोई भी सीता की सहायता करने नहीं आया।सभी लोग मानवता खो कर बैठे जब सभ्य नगर यानी अच्छे नगर के वासी तब सीता की सहायता की एक वन के संन्यासी ने।
रूपल दवे “रूप”