लघुकथा : अनजाने रिश्ते कितने अपने — पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’

राजेश एक शहर में नौकरी करता था।वहां वो अकेला रहता था। उसके पड़ोस में भाविक भाई और उस के परिवार में पत्नी भारतीबेन दो बच्चे रहते थे। भाविकभाई भी नौकरी करता था। राजेश अकेला होने के कारण भारती उसकी मदद करती थी। कई बार अपने घर खिलाती पिलाती थी दोनों अनजाने थे मगर रिश्ते कितने अपने जैसे थे।
एक बार एक्सीडेंट में भाविकभाई की मृत्यु हो गई। भारती और दो बच्चे बेसहारा बन गया। राजेश ने भारती को कहा; ‘तुम चिंता मत करना मैं हूं ना!’
भारती को आश्वासन दिया। दोनों बच्चों को पढ़ने में भी सहायता की। भारती मन ही मन सोचने लगी;’ राजेश और हमारे बीच अनजान रिश्ते है, फिर भी अपने जैसे हैं।राजेश हमारा कितना ख्याल रखता है, कितना अच्छा है,हमारा कोई करीबी रिश्ता भी नहीं है फिर भी हमारी मदद करता है। आज भाविक न होने के बावजूद भी भारती दोनों बच्चों खुशहाल है। दोनों बच्चेकी पढ़ाई हो रही है। सुख चैन की जिंदगी जी रहे हैं। भारती मन ही मन राजेश का आभार प्रकट कर रही है।हमें हमेशा इंसानियत के साथ जीना चाहिए।हम किसी रिश्ते में बंधते रहते हैं तभी यह जिंदगी खुशहाल रह सकती है।
जीवन में किसी के लिये कुछ करो तो बिना उम्मीद के करो इस से आपको कभी दुःख नहीं मिलेगा आपको आनंद की अनुभूति होगी।
“जो हालात से हार मान बैठा वो सपनों से दूर हो गया,
जो हर हाल में मुस्कराया वो अपना नसीब खुद लिख गया।”
पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात