कंकर बना भूत — महेश तंवर सोहन पुरा

रात के करीब 1:00 बजे का समय था। हल्की- हल्की हवा बह रही थी। सघन अंधेरा छाया हुआ था। मेरे ताऊ जी के लड़के की शादी के दिन थे ,जो गांव से ढाई किलोमीटर दूर कुए पर रहता था। शेष सभी गांव में रहते थे। सात -आठ दिन हमें यूं ही देर रात को घर आना होता था ।
जिस राह से हमें गुजरना पड़ता था, वहां एक भैंया बाबा का मंदिर था, और कुछ जंगल भी था। गांव वालों द्वारा सुना जाता था कि यहां सफेद कपड़ो में सैयद बाबा घोड़े से तेज रफ्तार में गुजरता है ! वहीं राह में एक बरगद का पेड़ था। जिसमें भूत रहते हैं! इस प्रकार की कपोल बातें सुन सुनकर थोड़ा-थोड़ा भय भी मेरे मन में समाया हुआ था।
आज मेरी चप्पल शादी के माहौल में बदल गई। जल्दबाजी में, मैं अपनी चप्पल ढूंढने की बजाय किसी की बड़ी वाली चप्पल पहनकर घर के लिए रवाना हो गया । मेरी पत्नी स्नेहा मेरे साथ थी। ज्यों ही भैंया बाबा के मंदिर के पास हम पहुंचे, सैयद बाबा और बरगद में रहने वाले भूत याद आने लगे । हम दोनों जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा रहे थे। हवा के कारण बरगद के पत्ते खड़खड़ाने लगे, विचार आया कि भूतों ने ऐसा किया है। हम और जल्दी-जल्दी चलने लगे। मेरी चप्पल बड़ी होने के कारण छोटे-छोटे कंकर चप्पल के द्वारा मेरे ऊपर आने लगे, तो कभी स्नेहा को लगते। अब भय और बढ़ गया कि भूत आ गए हैं ।जबकि हमारे साथ कुछ भी नहीं हुआ। बड़ी मुश्किल से घर पहुंचे। सुबह हुआ रात की कहानी बड़े बुजुर्गों को बताया ,तो उन्होंने समझाया कि हवा से बरगद के पत्ते खड़खड़ाते हैं, और तुम्हारी चप्पल बड़ी थी, जिस के कारण कंकर उछल रहे थे। यह बात मुझे तुरंत समझ में आ गई कि वहां कोई भूत नहीं था चप्पल के द्वारा लगने वाले कंकर ही भूत थे।
महेश तंवर सोहन पुरा
नीमकाथाना (राजस्थान)