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*आ अब लौट चलें* लघु कथा — सुनीता तिवारी

 

रिया एक तुनक मिजाज लड़की थी रोहन सीधा सादा घरेलू बालक।
आखिर प्रेम विवाह हुआ था दोनों का।
दो माह में ही रिया ने रंग दिखाना शुरू कर दिया।
जरा सी कहा सुनी हो जाती तो बैग लगाकर बाहर निकल जाती।
अब एक बेटी ने जन्म लिया लेकिन कुछ न सुधरा।
पति,सास,ससुर किसी की परवाह न करती थी।
बेटी के जन्म से पहले नौकरी भी छोड़ दी अब घर में रहकर घर के लोगों से ही बत्तमीजी करना उसका काम था।
अपनी मनचाही हर बात में करना कर्तव्य समझती थी।
अब दूसरी बेटी ने जन्म लिया।
ससुराल में सब आराम होने के बावजूद भी नन्हीं बच्ची को लेकर मायके चली गयी।
वहाँ रहकर सब बात समझ आयी,घर में सभी कुछ आराम होने के बाद सौतेली माँ के ताने भी थे।
कुछ दिन में अंतर समझ आ गया अपने और पराये का।
आखिर उसने सोचा कि *अपना घर अपना ही होता है *आ अब लौट चले*।
अगले दिन गरीब रथ के टिकट बुक
करवाकर अलसुबह अपनी ससुराल आ गयी और दो दिन से ज्यादा मायके न रखने का खुद से वायदा किया।

सुनीता तिवारी

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