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वह फरिश्ता – लघुकथा – सुरेशचन्द्र जोशी

जनवरी माह के अमावस की वह काली रात लगभग 08:00 बजे का समय। साँय साँय चलती ठंडी हवाओं के साथ पानी की बौछार, उस काली घनी अंधेरी रात को और भी डरावना बना रही थी। किरन कस्बे में एक बैंक में नौकरी करती थी। वह रोज अपना काम समय से निपटाकर घर आ जाया करती थी। परन्तु आज एकाउंट न मिल पाने के कारण उसे कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी। देर और वर्षा के कारण किरन तेज तेज कदमों से, लगभग दौड़ने के अंदाज में, घर की ओर चले जा रही थी। चलते चलते उसने महसूस किया कि कुछ दूरी पर दो लड़के लगभग उसी की बराबर चाल में उसका पीछा कर रहे थे। मन ही मन वह घबरा तो जरूर गई थी फिर भी निडर होने का नाटक करती सधे हुए कदमों से अपने गंतव्य की ओर बढ़ती रही। इसी बीच उसको लगा कि वे दोनों लड़के उसके काफी पास तक आ गए हैं।
अब वे दोनों उसके बिल्कुल पास आ गए थे। पास आते ही उनमें से एक लड़का, जो अत्यंत हृष्ट पुष्ट था, ने किरन के साथ अभद्रतापूर्ण बातें करनी शुरू कर दी। वह किरन का हाथ पकड़ उसको अपनी ओर खींचने के लिये जैसे ही आगे बढ़ा किरण हड़बड़ाकर पीछे गिर गई।
अभी वह उठ भी नहीं पाई थी कि वह लड़का जिसने उसका हाथ पकड़ उसके साथ अभद्रता करनी चाही थी, औंधे मुँह जमीन में गिरा पड़ा था। किरन अभी यह समझने की कोशिश कर ही रही थी कि आखिर वह लड़का अपनेआप कैसे गिरा, तब तक एक आवाज आई बहन चलो मैं तुमको तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूँ।
इसके बाद किरन ने उस लड़के को, अपने साथी से कहते सुना कि तुम इतने घृणित होगे मैंने सपने में भी यह कल्पना नहीं की थी। आज और अभी से मेरी और तुम्हारी दोस्ती खत्म दुबारा मुझसे मिलने की कोशिश भी न करना। और अब उठ के तुरंत भाग जाओ नहीं तो इतना मारूंगा कि तुम सारी जिंदगी याद रखोगे।
अपने साथी को भगाने के बाद वह लड़का किरन को उसके घर तक छोड़ने के बाद बिना कोई बात किये तेजी से आगे बढ़ गया। उस लड़के को जाते हुए देख किरन ने ध्यान दिया कि वह लड़का जो उसको घर तक छोड़कर गया था अपने साथी की तुलना में बहुत ही दुबला और पतला था। किरण घबराहट में न तो उसका नाम ही पूछ पाई और न उसका धन्यवाद ही कर पाई जिसका उसको आज भी मलाल है।
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सुरेशचन्द्र जोशी, उत्तराखंड, पिथौरागढ़।
स्वलिखित व मौलिक।

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