दहलीज़ — सुनीता तिवारी

अब तुम्हें जहां जाना हो जाकर रहो, मेरा पल्ला छोड़ो।
कड़कती आवाज में रागिनी(सासु माँ ) ने कहा।
क्यों माँ?
क्या गलती हुई मुझसे।
एक वर्ष के अंदर मेरा बेटा भगवान को प्यारा हो गया।
मैंने सोचा था कि तुम आकर उसका भाग्य बदल दोगी।
पर तुम तो स्वयं निराश्रित होकर हमारी गोदी में बैठ गईं।
अब जीवन भर तुम्हें पालने का ठेका भी मुझे मिला।
रेखा ने कहा,माँ अगर रमेश बीमार थे तो मेरी जिंदगी क्यों खराब की आपने।
शादी से पहले बीमारी के बारे में बताना चाहिए था आपको।
पूरी जिंदगी किसके सहारे बिताउंगी।
मेरे तो माता- पिता भी बचपन से नहीं।
आप मेरी माँ हो ।
आपको छोड़कर न रह पाऊँगी।
तो फिर अनाथ आश्रम में जाकर रहो।
कुछ पल शांत रहने के बाद रेखा दहलीज़ को पार कर गयी।
आज यह दहलीज़ उसे पराई लगी जिसमें सोमेश उससे ब्याह रचाकर अपनी सेना की बर्दी पहने हुए इज्जत से घर लाया था।
और बुलंद आवाज में बोला था माँ यह तेरे वीर की पत्नी है मैं रहूँ या न रहूँ, इसे कभी आंच न आने देना।
वह पल याद आते ही रेखा की आँखों में आँसूं आ गए।
सुनीता तिवारी