अर्पण– लघुकथा — डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’

रमेश बहुत खुश था ।आज उसकी शादी की पहली सालगिरह थी ।वह सुबह जल्दी उठा । उसकी पत्नी कविता सो रही थी ।वह बाजार गया । फूलों से बनी एक सुन्दर वेणी कविता के लिए ले आया । एक दिन पहले ही शाम को उसने हीरे की अंगूठी कविता के लिए खरीदी थी ।
चाय बना कर कविता के लिए ले आया और बड़े प्यार से उसको जगाया। कविता को गले लगा कर शादी की पहली वर्षगाँठ की बधाई दी ।दोनों चाय पीने लगे ।चाय पीने के बाद उसने कविता के बालों में वेणी को लगा दिया और बहुत प्यार से उसकी उंगुली में हीरे की अँगूठी पहना दिया ।कविता बहुत खुश हुई और बोली, “इतने महँगे गिफ्ट लाने की जरूरत नहीं थी । मेरा प्यार जीवनपर्यंत तुम्हें #अर्पण रहेगा । तुम्हारे द्वारा लाई गई वेणी ही मेरे लिए बहुत है ।मैं पूर्णतः तुम्हारे प्रेम के प्रति समर्पित हूँ ।”
“हमें पूरे परिवार को साथ ले कर चलना है । माता-पिता छोटे देवर , ननदों का ध्यान रखते उनकी ख्वाहिशों को भी पूरा करना है इसलिए जितनी चादर हो, उतना ही पैर पसारना चाहिए । गुलाब का एक फूल भी मेरी खुशी के लिए बहुत है । मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे बेहद प्यार करते हो ।”
प्रेम का भाव मन से जुड़ा होता है । प्रेम जीवन का आधार है ।
रमेश की आँखों में खुशी के आँसू थे । उसे कविता पर गर्व हो रहा था । कविता की संवेदनाएँ उसके परिवार से जुड़ी हुई हैं । वह सबका बहुत ध्यान रखती है, उसे यह पता था ।उसने कविता को अपने सीने से लगा लिया ।
डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’