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कभी जाहिर न हो पाए दिल के एहसास — मीनाक्षी सुकुमारन नोएडा

 

कितनी बातें दिल की दिल में ही रह गयीं
जो कभी कह ही नहीं पाए
आज जब पिता साथ हाथ दोनों छोड़ चले गए
पिता क्या थे हमारे लिए
क्या था उनका साथ होना
क्या था उनका सामने होना
क्या था उनका बात बात पर राह दिखाना कभी प्यार से, कभी टोक कर, कभी डांट कर, कभी समझा कर
आ रहा है समझ जब दिल आँखें ढूंढ़ रही
पर नहीं वो कहीं भी
बेबस, भरा, रोता, बिलखता दिल
बहते आँसूं बस ढूंढ़ रहे उन्हें ही पूरे घर में
न जाने क्यों यूँ ज़िन्दगी हार गई मौत के सामने
और कर दिया जुदा पिता से हमें
फिर भी न दिल, न दिमाग, न आँखें
कर पा रही यकीन सच कुछ ऐसा हो
गया है साथ हमारे
आखरी यात्रा, अंतिम संस्कार, अस्थि विसर्जन,
पिंड दान, प्रार्थना सभा, हवन, ब्राह्मणों का भोज
हर विधि, विधान सब हो रहा आँखों के सामने
फिर भी नहीं हो रहा यकीन
पिता यूँ साथ और हाथ छोड़
चले गए हैं छोड़ बेबस गमगीन लाचार
दिल इसी उलझन में है
कैसे कर लें नियति ये
स्वीकार की नहीं रहा सर
पर साया पिता का
बस है यादों का घेरा
औए पल पल छलकती आँखें खोजती
पिता की एक झलक को
है ज़ख्म गहरा और ताज़ा
न जाने क्या कभी मिल
पाएगी राहत
इस दर्द से बिछड़न के।।

 

मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा

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