जीवन में प्राणायाम का महत्व — सुरेशचन्द्र जोशी,

प्राणायाम “प्राण” व “आयाम” से मिलकर बना है। “प्राण” का अर्थ है जीवन ऊर्जा और “आ+यम” का अर्थ है नियंत्रण। प्राणायाम के अभ्यास में साँस लेने के व्यायाम और तरीके शामिल होते हैं। प्राणायाम में व्यक्ति एक विशिष्ट क्रम में सांस लेते हैं, सांस रोकते हैं और सांस छोड़ते हैं।
प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर में ऊर्जा वहन करने वाले मुख्य स्रोतों का शुद्धिकरण करना है। अतः यह अभ्यास पूरे शरीर का पोषण करता है। प्राणायाम से मन में निश्चलता आती है, यह शांति प्रदान करता है, जीवन शक्ति बढ़ाता है, तनाव एवं चिंता के स्तर को कम करता है साथ ही साथ एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है। प्राणायाम से कफ विकार को भी कम किया जाता है।
योग में प्राणायाम का बहुत महत्व है। इसका उपयोग शारीरिक मुद्राओं (आसन) और ध्यान (ध्यान) जैसी अन्य प्रथाओं के साथ किया जाता है। प्राणायाम योग को सफल बनाता है। प्राणायाम सदैव योगासन के बाद किया जाता है। जहाँ योग अस्थमा जैसी बीमारियों को ठीक करने में मदद करता है, वहीं प्राणायाम हृदय गति और रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
प्राणायाम के प्रकार:
अनुलोम विलोम:
अनुलोम-विलोम से कई रोगों को दूर किया जा है। इसमें एक नाक से सांस लेने के बाद दूसरे से सांस को छोड़ा जाता है, तत्पश्चात इसकी विपरीत प्रक्रिया। इसके नियमित अभ्यास से स्ट्रेस दूर होता है, साथ ही मन शांत होता है।
कपालभाति:
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें और साँस को बाहर फैंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इसमें सिर्फ साँस को छोड़ते रहना है। दो साँसों के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी, जान-बूझ कर साँस को अन्दर नहीं लेना है। कपालभाति प्राणायाम लगातार करने से चहरे का लावण्य बढ़ता है। कपालभाति प्राणायाम का सबसे प्रमुख फायदा है शरीर की बढ़ी हुई चर्बी का घटना।
भस्त्रिका:
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी साँस फेफडों में ही भरें, फिर लंबी साँस फेफडोॆ से ही छोडें। साँस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे। हृदय व फेपडे मजबूत व मस्तिष्क सम्बन्धी रोग दूर होते हैं।
उज्जयी:
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें, सिकुड़े हुवे गले से सास को अन्दर लेना है। इससे थायराइड में आराम मिलता है, तुतलाना व हकलाना कम होता है।
भ्रामरी:
दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखों पर रख दे। और लंबी साँस लेते हुए कण्ठ से भवरें जैसी आवाज निकालना है। यह मायग्रेन पेन, डीप्रेशन, और मस्तिष्क से सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये किया जाता है।
यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि चाहे योग हो या प्राणायाम किसी कुशल शिक्षक की देख रेख में ही करना चाहिए। एक कुशल शिक्षक ही यह बता सकता है कि किसे व किस प्रकार करने से लाभ है अन्यथा लाभ के स्थान पर नुकसान भी हो सकता है। उदाहरण स्वरूप कमर दर्द के रोगियों को कपालभाति नहीं करना चाहिए।
सुरेशचन्द्र जोशी, उत्तराखंड, पिथौरागढ़।