Uncategorized

दृष्टिकोण– बिमला रावत

 

पुत्र मोह और मंथरा के बहकावे में आकर रानी कैकयी ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे l एक वरदान में अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और दूसरे वरदान से राम के लिए 14वर्ष का वनवास l
भरत जब ननिहाल से वापिस अयोध्या आये और अपनी माँ कैकयी से दोनों वरदानों के बारे में जाना तो वे अपनी माँ को माँ कहने में भी स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे थे l उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आप
अपराधी हो और आपने पुत्र मोह में आकर अपने पुत्र को स्वयं से दूर कर लिया है, आज से ना मैं आपका पुत्र हूँ और नाही आप मेरी माता है l
भईया राम के बिना मेरा जीवन व्यर्थ है l आपकी इस भूल को सुधारने के लिए मैं भईया राम से मिलने वन जाऊंगा और उनको वापस अयोध्या लाकर राजसिंहा सन पर बिठाऊंगा l
सदियों से चला आ रहा है कि राजसिंहासन के लिए अपनों के बीच कितने अपराध होते हैं पर अयोध्या में राजसिंहासन को लेकर एक अनूठा प्रयोग हुआ l भरत के अनुनय -विनय के बाद भी जब राम अयोध्या वापिस नहीं लौटे तो भरत ने भी प्रतिज्ञा ली कि जब तक आप (राम) 14वर्ष का वनवास समाप्त कर वापिस नहीं आओगे तब तक आपकी चरणपादुका राजसिंहासन पर रहेंगी और मैं एक सेवक की तरह रहुँगा l
भरत के समर्पण और राम के कर्तव्य बोध ने एक ऐसी मर्यादा स्थापित की है जिसका अनुसरण किया जाए तो समाज में पद और प्रतिष्ठा के लिए होने वाले अपराध कम हो जाएंगें और सुख शान्ति का माहौल बन पायेगा l
आपस में बिना किसी मनमुटाव के प्रेम और स्नेह से रहे एक दूजे के मन को समझें और मिल बैठकर एक दूसरे की समस्याओ का समाधान करने की कोशिश करें l

बिमला रावत
ऋषिकेश (उत्तराखण्ड)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!