एक कदम जागरूकता की ओर — बबिता शर्मा

आज नजर उठाकर देखा जाए तो जहां तक भी नजर जाती है कोई भी जीव विषाक्त हुए बिना नजर नहीं आता है शरीर रोगों की खान बन चुका है वह 20की आयु में ही 40 की आयु के व्यक्ति के समान दिखाई दे रहा है ।आजकल लोग घर के खाने के प्रति रुचिकर नहीं रहे और रहेंगे भी कैसे …..आज खाने में वो प्यार और भाव ही सम्मिलित नहीं होते जो हमारे पूर्वज बनाते थे ;उनका खाने के प्रति पूर्ण भाव , प्यार और साथ ही उनकी लग्न भी शामिल होती थी .भोजन बनाते वक्त उनके वो भजन के सुर और आंखों से बरसता प्यार भोजन को अपने आप ही शक्तियां प्रदान कर देता था जिसे खाने के पश्चात तन और मन दोनों ही तृप्त हो जाते थे ।
आज सबकुछ इसके विपरीत हो रहा है नारियों की तो पूछो ही मत जब पहनावे में ही शालीनता न हो तो भोजन गुणवान कैसे हो सकता है ? आज नारी के पास समय का अभाव ही उसके गृहकार्यों को अरुचिकर बना रहा है ।अपने स्वयं के बच्चे को पालने के लिए उसे ’आया ’ की आवश्यकता होती है मां के स्पर्श के स्थान पर उसे ’आया ’का स्पर्श मिल रहा है तो संभव है कि गुण भाव भी ’आया’ के ही होंगे । और तो और ये रील बनाने का खुमार …..…ये तो जैसे एक रोग बन गया है इसने घरों को विपरीत दिशा प्रदान की है और बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है ।आज घर परिवार के सदस्यों में कम्युनिकेशन का अभाव प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है जिसके दुष्प्रभाव यह है कि एक ही छत के नीचे रहने वाले चार व्यक्ति भी एक दूसरे को पूरी तरह से नहीं पहचान पाते है । इसे आप विकास खाएंगे या फिर विनाश ।समय है जागरूक होने का यदि इस ओर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया तो बचेगा केवल तबाही का मंजर जो भविष्य में सबके के लिए अत्यंत दुखदाई होगा ।
बबिता शर्मा