श्रृंगार और हास्य की रसवर्षा में भीगा सावन — कल्पकथा मंच पर रची गई साहित्यिक छटा

जयपुर – हास्य और श्रृंगार जीवन के दो ऐसे रस, जो न केवल मन को गुदगुदाते हैं, बल्कि आत्मा को रससिक्त कर चेतना को उदात्त बनाते हैं। ऐसे ही रसों से आप्लावित रही कल्पकथा साहित्य संस्था की २०७वीं ऑनलाइन काव्यगोष्ठी, जिसने सावन की सिहरन, श्रृंगार की कोमलता और हास्य के चटपटे व्यंग्य से एक अनुपम काव्य रात्रि का सृजन किया। संवाद प्रभारी ज्योति राघव सिंह के अनुसार, इस बार की गोष्ठी सावन के गीतों, प्राकृतिक छवियों, सामाजिक व्यंग्य, हास्य के हंसगुल्लों और श्रृंगार के स्निग्ध भावों को समर्पित रही, जहाँ काव्य न केवल उच्चारण बना, बल्कि हृदयों की भाषा भी बन गया। मुख्य अतिथि जे.पी. शर्मा जयपुर राजस्थान से जुड़े बहुमुखी प्रतिभा संपन्न गीतकार, संगीतकार, पत्रकार, भजन भूषण एवं नजर इंडिया 24 न्यूज के प्रधान संपादक की गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। अध्यक्षता की पं. सुंदरलाल जोशी (नागदा जंक्शन, म.प्र.) ने, जो श्रृंगार रस के अद्वितीय साधक हैं। संचालन किया आशुकवि भास्कर सिंह ‘माणिक’ एवं पवनेश मिश्र ने। कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ वाराणसी के वैदिक विद्वान पं. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ की संस्कृत वांग्मय से जिसमें गणेश वंदना और सरस्वती वंदना द्वारा वातावरण मंगलमय हो उठा। पं. सुंदरलाल जोशी की रचना पानी ही पानी ने पर्यावरणीय सौंदर्य और श्रृंगारिक भावों का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया। जे.पी. शर्मा की स्वरबद्ध प्रस्तुति आई बागों में बहार, झूला झूले राधा प्यारी ने श्रोताओं को रससिक्त कर दिया। कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’ की प्रेम पटाखा और क्यों करती हो प्यार मुझे” जैसी हास्य रचनाओं ने ठहाकों की फुलझड़ी बिखेरी। ज्योति राघव सिंह की भक्ति श्रृंगार रस में सनी प्रस्तुति सावन लागे मनभावन ने मानसून को मधुरता से रंग दिया। डॉ. पंकज कुमार बर्मन की थर थर एग्जाम और तेरा प्यार ने हास्य और समसामयिक तनाव को रचनात्मक अंदाज में दर्शाया। पं. अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ की कजरी रचनाएँ हरे रामा सावन मास सुहावन एवं मेरे मन के मीत मेरे सुघर गीत ने लोकसंगीत की सुगंध से श्रोताओं को सराबोर किया। विष्णु शंकर मीणा की धरा को बादल का प्रत्युत्तर ने प्रकृति के संवाद को खूबसूरत अभिव्यक्ति दी। डॉ. जया शर्मा ‘प्रियंवदा’ की अशेष हूं मैं और तन्हा नहीं होती मैं में स्त्री चेतना और आत्मबल की मुखरता दिखाई दी। डॉ. अंजू सेमवाल की कविता किया श्रृंगार धरती ने प्रकृति और जीवन के सौंदर्य को बिंबात्मक रूप में प्रस्तुत किया। पवनेश मिश्र की लोकगंध से सुवासित रचना टेसू और सांझी ने ग्रामीण संस्कृति की भावभीनी झांकी प्रस्तुत की टेसू और सांझी महाबूलिया, सुअटा नौरता ओ छुपन-छुपाई, माई की बेटी, बाबा की लड़ेती, सहोदरी जिनसे भरी अमराई,अन्य सहभागी साहित्य मनीषियों में शोभा प्रसाद, सुनील कुमार खुराना, डॉ. श्याम बिहारी मिश्र, ज्योति देशमुख, संपत्ति चौरे ‘स्वाति’, राधा श्री शर्मा एवं भास्कर सिंह ‘माणिक’ आदि की रचनाओं ने कार्यक्रम को विविधता और भावसमृद्धि प्रदान की।कार्यक्रम की सबसे सरस छाया रही भजन प्रस्तुति जिसमें हनुमान भजन की संगीतमय प्रस्तुति एवं नंदगांव के नंद भवन से हरियाली तीज पर श्याम-बलराम के दर्शन ने भक्ति की रसधारा प्रवाहित कर दी।अध्यक्षीय उद्बोधन में पं. सुंदरलाल जोशी ने कहा हास्य और श्रृंगार, जीवन की दो अनिवार्य शिराएँ हैं, जो उसे न केवल सरस बनाती हैं अपितु सचेत भी करती हैं। मुख्य अतिथि जे.पी. शर्मा ने कहा ऐसे काव्य आयोजनों से साहित्य को संबल मिलता है, साथ ही समाज में समरसता और सौहार्द का नवप्रवाह उत्पन्न होता है संस्थापक राधा श्री शर्मा ने सभी सहभागी विद्वानों एवं श्रोताओं का हृदय से आभार व्यक्त करते हुए सर्वे भवन्तु सुखिन के साथ मंगलकामनाएँ प्रेषित कीं। कल्पकथा साहित्य संस्था द्वारा आयोजित यह काव्य संध्या साहित्यिक गरिमा, भावनात्मक गहराई और सामाजिक चेतना का एक स्मरणीय अध्याय बनकर साहित्यिक मंचों पर अपनी विशेष छाप छोड़ गई।