एक पाती तुम्हारे नाम — मंजू शर्मा कार्यकारी संपादक

आज मेरा मन हुआ तुम्हें एक पाती लिखूं
सुनो, तुम इसे संभाल कर रखना। जब मेरी याद आए तब खोलकर पढ़ लेना। मेरे शब्दों में, मेरी परछाई नजर आयेगी तुम्हें…एक बात बताओ तुम… तुम्हें कभी याद नहीं आती मेरी…? कैसे कंट्रोल किया तुमने खुद को…? तुम निर्मोही हो ये तो मैं जानती हूँ लेकिन इतने बड़े वाले ये नहीं सोचा था कभी…मैं तुमसे जितना दूर जाना चाहती हूँ उतना ही उलझ जाती हूँ। अनेक प्रश्न आ घेरते हैं मुझे । जिनका हल मुझे समझ ही नहीं आता है। इतना तो पक्का है । रही होगी कोई बड़ी मजबूरी तुम्हारी…उन मजबूरियां में भी मेरा हित ही छुपा होगा । नहीं तो तुम, ऐसे तो नहीं थे। तुम जानते हो ना… एक दिन कहा था मैंने…तुमसे मिलना महज इत्तेफाक रहा हमारा और तुम तपाक से बोल पड़े। बिना नारायण की कृपा से कोई संबंध नहीं बनते। जिंदगी में किससे मिलना है ये वही तय करते हैं । ये सत्य भी है सात्विक प्रेम एकबार जिंदगी में दस्तक जरूर देता है। जाने कितने जन्मों की तपस्या के बाद इस शास्वत अनुभूति को लोग महसूस कर पाते हैं। मैंने भी महसूस किया उस अहसास को… एक सुखद अनुभव हमारे जीवन का। तुम्हारे आगमन से जीवन रंग-बिरंगे फूलों से खिला उपवन बन गया था। सबकुछ आसान-सा हो गया…दबी प्रतिभा निखरने लगी और सपने साकार होते नजर आए। एक कहावत सुनी है तुमने…आँख के अंधे को चारों ओर हरियाली नजर आती है। वैसे ही बिल्कुल…प्रेम जब भक्ति बन जाता है तो प्रभु नजर आने लग जाते हैं। फिर चाहे वो करीब हो या दूर कोई मायने नहीं रखता। मुझे अपने जीवन का प्यार और अपनापन सब तुमसे मिला । जिस तरह से तुम मुझे समझते हो, मेरा साथ देते हो और मेरी परवाह करते हो, वह शब्दों से परे है। तुम्हारे मेरे संबंध को किसी नाम की संज्ञा की जरूरत नहीं। इस आत्मीय बंधन के लिए मैं सर्वशक्तिमान प्रभु नारायण को धन्यवाद देती हूँ कि उसने मेरे जीवन में तुम जैसा एक फरिश्ता भेजा। जिसने मेरे दिल को खुशी और प्रेम से भर दिया। क्योंकि तुम्हारी दोस्ती मेरे जीवन का सबसे कीमती अनमोल उपहार है। बिल्कुल ईश्वर-सा जिसे मन ने भी स्पर्श नहीं किया है। सुनो, जब तुम मेरे साथ चलते हो, तो मैं इस दुनिया की सबसे मजबूत और सबसे खुश खुद को महसूस करती हूँ। जब तुम मेरी आँखों में देखते थे तो मुझे लगता था कि मैं इस दुनिया को जीत सकती हूँ। हमेशा मुझ पर विश्वास करने के लिए और मुझे समझने के लिए तुम्हारा धन्यवाद।जानते हो हर रोज तुम्हारे इंतजार में एक शाम ढल रही है। जाने कब जिंदगी का सूर्यास्त हो जाए, तुम लौट आना उस अंतिम अस्त से पहले। बस इतना ही कहना था मुझे… तुम भी ख्याल रखना अपना।
मंजू शर्मा कार्यकारी संपादक