स्वच्छता बनाम हमारी ज़िम्मेदारी —- दीपक शर्मा शिक्षाविद, अधिवक्ता और सामाजिक चिंतक

भारत एक ऐसा देश है जहाँ परंपरा, संस्कृति और आध्यात्मिकता का संगम होता है। लेकिन जब बात नागरिक जिम्मेदारियों की आती है, विशेषकर स्वच्छता की, तो हम अक्सर यह मान लेते हैं कि यह केवल सरकार या नगर निकायों की ज़िम्मेदारी है। यह दृष्टिकोण न केवल अनुचित है, बल्कि हमारे समाज के नैतिक और नागरिक मूल्य के ह्रास की ओर संकेत करता है।
स्वच्छता कोई एक-दिवसीय गतिविधि नहीं है, यह एक जीवनशैली है — एक ऐसा व्यवहार, जो हर नागरिक को अपने कर्तव्यों में सम्मिलित करना चाहिए। यदि हम सच में एक विकसित और स्वस्थ भारत का सपना देख रहे हैं, तो हमें यह समझना होगा कि स्वच्छता केवल “स्वच्छ भारत मिशन” या “सफाई अभियान” तक सीमित नहीं है; यह हर व्यक्ति की साझी जिम्मेदारी है।
प्राचीन भारतीय सभ्यता में स्वच्छता को आध्यात्मिक शुद्धता से जोड़ा गया है। “स्वच्छ तन, स्वच्छ मन” का विचार हमारी संस्कृति में गहराई से निहित है। परंतु आज आधुनिकता की दौड़ में हमने बाहरी चमक पर तो ध्यान दिया, लेकिन आसपास के वातावरण की शुद्धता को अनदेखा कर दिया।
स्वच्छता का सीधा संबंध स्वास्थ्य, पर्यावरण और सम्मानजनक जीवन से है। गंदगी केवल बीमारी ही नहीं लाती, बल्कि यह मानसिक तनाव, सामाजिक असंतुलन और शहरों की छवि को भी प्रभावित करता है ,स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियान सरकार की तरफ़ से सराहनीय पहल हैं। करोड़ों रुपए खर्च कर शौचालयों का निर्माण किया गया, जागरूकता अभियान चलाए गए, और बड़े-बड़े प्रचार किए गए। परंतु सवाल यह है: क्या हम, आम नागरिक, वास्तव में इस आंदोलन का हिस्सा बन पाए?
बहुत से लोग सोचते हैं कि सफाई कर्मचारियों का काम केवल गंदगी साफ करना है। परंतु क्या यह जिम्मेदारी केवल उन्हीं की है? क्या हम यह नहीं समझते कि हमारी छोटी-छोटी आदतें — जैसे सड़क पर कूड़ा फेंकना, सार्वजनिक स्थानों पर थूकना या प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग — इस समस्या को और गंभीर बना रही है ।जब तक आम नागरिक इस अभियान को अपना निजी दायित्व नहीं समझेंगे, तब तक कोई भी सरकार या संस्था इस मिशन को पूरी तरह सफल नहीं बना सकती।
स्वच्छता: सामाजिक दायित्व या नैतिक कर्तव्य?
यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। स्वच्छता केवल सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने का एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक कर्तव्य भी है। जिस प्रकार हम मंदिर में प्रवेश करते समय जूते उतारना, नदी में नहाने से पहले शरीर साफ़ करना या भोजन से पहले हाथ धोना आवश्यक समझते हैं, उसी प्रकार हमें अपने गली, मोहल्ले और शहर की स्वच्छता को भी पवित्रता का प्रतीक मानना चाहिए।
हमें यह समझना होगा कि यदि हम अपने घर को साफ रखते हैं, तो समाज भी हमारा बड़ा घर है — उसकी सफाई भी हमारी जिम्मेदारी है।
बदलाव की शुरुआत: घर से
किसी भी सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत घर से और स्वयं से होती है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी स्वच्छता के महत्व को समझे, तो हमें उन्हें स्वयं उदाहरण बनकर दिखाना होगा।
• बच्चों को कूड़ेदान में कचरा डालने की आदत डालें।
प्लास्टिक का उपयोग सीमित करें।
सामूहिक सफाई अभियान में भाग लें।
स्थानीय स्तर पर स्वच्छता समितियाँ बनाएं।
अपने आस-पास के लोगों को प्रेरित करें।
हम अक्सर बड़े बदलाव की उम्मीद सरकार से करते हैं, लेकिन असली बदलाव तब आता है जब एक आम नागरिक असामान्य सोच अपनाता है।
यदि हम एक स्वस्थ, समृद्ध और सम्मानजनक भारत की कल्पना कर रहे हैं, तो यह केवल सरकार या किसी एक संगठन का कार्य नहीं हो सकता। यह एक साझा संकल्प है — हर नागरिक, हर परिवार, हर मोहल्ले और हर स्कूल की संयुक्त जिम्मेदारी।
स्वच्छता सिर्फ सफाई करने तक सीमित नहीं है; यह एक सोच, एक आदत, और एक आंदोलन है।
आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें:
“मैं अपने घर, अपने गली, अपने मोहल्ले, अपने शहर और अपने देश को स्वच्छ और सुंदर बनाऊँगा। यह मेरी जिम्मेदारी है, मेरा कर्तव्य है, और मेरा अभिमान है।”
लेखक
दीपक शर्मा शिक्षाविद, अधिवक्ता और सामाजिक चिंतक