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राष्ट्रीय बेटी दिवस // सुप्रसिद्ध लेखक व कवि सूरज कांत की कलम से

राष्ट्रीय बेटी दिवस // सुप्रसिद्ध लेखक व कवि सूरज कांत की कलम से

बेटी का दिन आज क्यों होता बेटी का दिन रोज
बेटी से ही होती हमारे मन की,सदा सदा ये मौज

ससुराल हो या मायका, बेटी अपने ही घर आती
दो घरों ने जिसे अपनाईं,बेटी नहीं ये कभी पराई

बना कर बेटी प्रभु ने, यह दुनियाँ बेहतरीन बनाईं
बेटी घर की होती जन्नत, रौनक बेटी से ही आई

बेटी चहचहाती चिड़िया, जिसके नन्हे नन्हे पर्र
एक नहीं बेटियों के होते, सदा अपने दो दो घर

माँ बाप के छुपे दर्द को, ये बेटियाँ खूब समझतीं
अपनाए जो दिल से बेटी, ख़ुशियाँ बहुत बरसतीं

देके सुन्दर दलील,करातीं हमको सदा गुडफील
मन ही मन जब सहती, करती प्रभु से यह अपील

मिल बैठ समझती बात,बेटियाँ होती सहनशील
बेटियाँ प्रेम प्यार की बहती, स्वच्छ निर्मल झील

खोजने से,ना मिलता कभी, ख़ुशियों का सामान
मुक़द्दर से मिलती ख़ुशियाँ, इतना मुझको ज्ञान

बेटियाँ ही सदा पूरा करती, दिल का हर अरमान
बेटी,महकते दैविक फूलों की,सबसे बड़ी दुकान

परमात्मा ने दी छाया हमें,खूबसूरत यह वरदान
बहु मेरी बनी बेटी सिमरन, ख़ुशियों का जहान

अपनी प्रतिभा की बनाई,दोनों ने अपनी पहचान
दो बेटियाँ, देकर प्रभु ने, बढ़ाया हमारा सम्मान

ज़िंदगी में किया दोनों ने, अक्सर काम महान
मेरी आनबान व शान,मेरी बेटियाँ मेरा अभिमान

सूरज कांत

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