Uncategorized

आंचलिक पर्वों का महत्व  // राजेन्द्र परिहार

आंचलिक पर्वों का महत्व

भारत वर्ष त्योहारों का देश कहलाता है, अर्थात इन
पावनतम त्योहारों से हमारा नाता है।
होली दीवाली
दशहरा रक्षाबंधन आदि मुख्य त्यौहारों के अतिरिक्त
भी प्रादेशिक आंचलिक इतने त्योहार है कि सभी के
बारे में विवरण बताना चाहूं तो शायद प्रदत्त शब्द
सीमा कदाचित कम ही पड़ जाएं।
अतएव मैं यहां
समयानुकूल त्योहारों लौहड़ी और मकर संक्रांति के त्योहार पर ही कुछ प्रकाश डालना चाहता हूँ।
मकर संक्रांति पर्व सदैव १४ जनवरी को ही मनाया
जाता है।
इससे एक दिन पूर्व १३ जनवरी के दिन
लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।
लोहड़ी पर्व विशेष तौर
से पंजाब का प्रादेशिक आंचलिक त्योहार होता है और जम्मू क्षेत्र में भी मनाया जाता है।
यह त्योहार
मूलतः किसानों का त्योहार होता है खेतों में फसल
अच्छी होने की खुशी में या नवविवाहित जोड़ों के
जश्न मनाने का सबब भी है।
होलिका दहन की तरह
ही लकड़ियों का ढेर लगा कर उसके आस पास खुशी
से नृत्य गायन, गिद्दा किया जाता है। खुशनुमा माहौल में रेवड़ी, मूंगफली,तिल निर्मित व्यंजन का
वितरण करना शुभ माना जाता है।
हर्षोल्लास का
माहौल में हंसी खुशी का वातावरण सर्वत्र आनंद
दिखाई देता है।
मकर संक्रांति का पर्व भी लगभग इसी तरह से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से सूर्य
देव उत्तरायण होते हैं और इस दिन से ही दिन बड़े
होने लगते हैं।
मकरसंक्रांति तिल गुड़ की मिठास संग
मनाया जाने वाला खुशियों भरा पर्व होता है।
भारत के कुछ प्रदेशों राजस्थान,म०प्र०, गुजरात में यह पर्व
धूमधाम से मनाया जाता है। वस्त्र, सुहागन के सामान
आदि का दान देना शुभ माना जाता है।
गायों को हरा चारा खिलाने का बड़ा महात्म्य भी है इस पावन पर्व पर।
सबसे बड़ा उत्साह तो पतंगबाजी का होता है।
आसमान में रंग बिरंगी पतंगों की कलाबाजियां मन
में उत्साह का संचार करती है।

राजेन्द्र परिहार “सैनिक”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!