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लघुकथा — कांवड़ लेने जाना है’– कृष्ण कान्त बडोनी

 

बचपन बड़ा अनोखा होता है, बच्चा जिद कर ले तो उसे मनाना बहुत मुश्किल होता है। रोहित अपनी मां से ज़िद करता है कि मुझे कांवड़ लेने हरिद्वार जाना है।मां उसे समझाती है बेटा अभी तुम बहुत छोटे हो कुछ और बड़े हो जाओ तो तुम्हें जाने दूंगी किन्तु वह नहीं मानता और अपने दोस्तों के साथ कांवड़ लेने चला जाता है।

रेणुका रोहित की मां अपने बच्चे को लेकर बहुत चिंतित रहती है आखिर रहती भी क्यों नहीं। वही तो उसका एक सहारा है पति को गुजरे पांच साल हो गये हैं। घरों में काम करके किसी तरह अपना और बच्चे का भरण-पोषण कर रही है।एक सरकारी स्कूल में उसे पढ़ा रही है। ज़िन्दगी की कोई उम्मीद बची है तो यही कि अपने बच्चे को बड़ा आदमी बनाना है।

तीन दिन हुए हैं रोहित को घर से गये हुए।हर क्षण दिल में उसकी सलामती की कामना करते हुए रेणुका एक-एक पल किसी तरह गुजार रही है। फ़िक्र बच्चे की, वह सही सलामत घर लौट आए। भगवान भोलेनाथ का स्मरण करती है और हर वक्त उनसे विनती है मेरा लाल जल लेकर घर लौट आए।
नंगे पांव कैसे चल रहा होगा? खाना खाया होगा या नहीं? किसी के साथ लड़ाई झगड़ा तो नहीं किया होगा? ऐसे ही न जाने कितनी ही बातें उसके दिमाग में चल रही थीं कि तभी उसके मालिक (जहां वह झाड़ू पोंछा लगाने जा रखी थीं)ने उसे आवाज देकर बुलाया।
‘ रेणुका यह तुम्हारा बेटा है?’
सामने टी वी स्क्रीन पर दिखाते हुए।

रेणुका अपने बेटे को टी वी स्क्रीन पर देख कर चौंक जाती है किन्तु तभी न्यूज बदल जाती है किन्तु उसका दिल अनहोनी आशंका से बैठ जाता है उसे लगता है जैसे जान बस निकलने वाली है।

उसे चिन्तित और घबराहट में देखकर मालिक कहते हैं
‘रेणुका घबराओ मत तुम्हारे बच्चे को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मानित किया है। जब वह जल लेकर आ रहा था तो उसे रास्ते में एक घायल दिखाई दिया, जो पानी मांग रहा था। किन्तु सभी उसे नजरंदाज करके आगे बढ़ रहे थे तो तुम्हारा बेटा वहां रुका उसने उसे अपनी कांवड़ का गंगाजल पिलाया और अस्पताल पहुंचाया।यह सारी घटना कैमरे में योगी जी ने देखी तो उसे पुरस्कृत किया है।’

रेणुका की आंखें यह सुनकर छलक पड़ी। उसने भगवान भोलेनाथ का स्मरण करके नमन किया। उसे आज सच में आभास हो गया कि उसका बेटा सचमुच बड़ा आदमी बन गया है।

-कृष्ण कान्त बडोनी

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