परोपकार जीवित है — उर्मिला पाण्डेय उर्मि

परोपकार जीवित है धरती पर तभी तो वसुधा टिकी है।
परोपकार यदि खत्म हो गया सारी जगती मिटी है।
मुझे समझ में नहीं आता कि सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते तभी तो मेरे हाथ की उंगलियां भी जब एक जैसी नहीं होतीं तो इंसान कैसे एक हो सकता है।
अभी मेरी तबियत बहुत खराब हो गई मैं हौस्पीटल में दिखाने गई मेरे साथ प्रगति पाण्डेय साथ में गई अल्ट्रासाउंड हुआ आंतों में सूजन और गैस की परेशानी निकली प्रगति तो हमें छोड़कर थोड़ी देर बाद चलीं गईं। मैं अकेली थी मेरे पति भी अल्ट्रासाउंड करवाके चले गए घर पर कोई था नहीं। अस्पताल में एक सुजाता नाम की लेडीज़ युवा ही थीं उन्होंने मेरी बहुत सहायता की समय पर दवाई पानी पिलाना वाशरूम ले जाना सभी कार्य किए मैंने सोचा कि अभी भी परोपकारी व्यक्ति और परोपकार जीवित है। मैं उनके इस कार्य कभी भुला नहीं सकती उनसे परिचय भी नहीं फिर भी मेरी सहायता की मैं इस समय अस्पताल में हूं अब आराम है। ग्लूकोज चढ़ रहा है तबियत बहुत खराब थी।जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान् होता है भगवान ने सुजाता के रूप में मानों राधा रानी को ही मेरी सहायता के लिए भेज दिया।
उर्मिला पाण्डेय उर्मि कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश