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जीवन साथी — माया शर्मा
जब कोई परफेक्ट इंसान किसी का साथी (हम सफर) बनता है तो लोग तारीफ़ के पुल बांधते हैं, लेकिन जब कोई ऐसे इंसान के साथ खुद को जोड़ना चाहे जो किसी अंग से विहीन हो तो लोग या तो उनमें कमी निकालते हैं या फ़िर यही कहते हुए नज़र आते हैं कि क्या उसको किसी चीज का लालच था जो उस
इंसान ने ऐसा जीवन साथी चुना या उसमें भी कोई कमी रही होगी तभी उस इंसान ने ऐसा कदम उठाया।
मेरी नज़र में ऐसा इंसान फक्र करने या कहूँ दिल से सलाम करने लायक होता है। बोलने वाले और खामियां निकालने वाले तो हजारों लोग मिल जाएंगे मगर बात तो तब है जब कोई इंसान किसी ऐसे इंसान का हाथ थामे जिसको बाकी लोग सिर्फ दया की दृष्टि से देखते हैं या नज़र अंदाज कर देते हैं।
माया शर्मा /लेखिका