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लघु कथा: अंतर्मन की वेदना — पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम

 

जिंदगी में खुश रहने और खुश होने में बहुत फर्क होता है।अक्सर हंसते हुए और हंसते चेहरे के पीछे की घुटन को कभी कभी कोई देख ही नहीं सकता महसूस किया जाता है।
अंतर्मन में जो वेदना छिपी होती है वो सच्चा साथी ही महसूस कर सकता है जैसे भगवान अपने भक्त के अंतर्मन को पहचानता है।
राजेश और रेखा एक शहर में रहता था।राजेश कंपनी में काम करता था और रेखा घर चलाती थी। रेखा के दो भाई भी शहर में अच्छी नौकरी करते थे।
रेखा के माता पिता गांव में रहता था। रेखा के दोनों भाई अपने माता पिता की देखभाल नहीं करता था। कभी कभी गांव जाते थे।गांव में माता पिता बीमार रहते थे।उसने खाने पीने मे भी बहुत तकलीफें सेहनी पड़ती थी। उसको मालूम नहीं था की माता पिता के दर्द के आंसू संतान को लक्ष्मीहीन या पुत्रहीन बनाता है।इसीलिए माता पिता को कभी भी दुःख मत पहुंचाना।
अब रेखा की माता का देहांत हो गया पिताजी अकेला हो गया। पिताजी भी बीमार रहते थे।
पिताजी की हालत देखकर रेखा मन ही मन दुःखी रहती थी। पिताजी के बारे में सोचती रहती थी। बहुत दुःख होता था।
यह देखकर राजेश ने कहा;
‘रेखा,तेरे मन में क्या चल रहा है,तू क्या सोचती रहती है?’ तेरी घुटन में महसूस करता हूं,तेरे अंतर्मन की वेदना में जान सकता हूं। तू पिताजी के बारे में सोचते हैं न? तू चिंता मत कर कल ही मैं गांव जाकर पिताजी को यहां ले आएंगे।
राजेश की बात सुनकर रेखा को बहुत अच्छा लगा वो मन ही मन सोचती;’मुझे राजेश जैसा अच्छा, समझदार पति मिला। मेरे अंतर्मन की वेदना को महसूस करने वाला पति मिला।वो बहुत खुश हुई।
राजेश गांव जाकर पिताजी को शहर में ले आया। दोनों ने बहुत सेवा श्रृसुशा की। यह देखकर पिताजी ने कहा;’राजेश तुम मेरे जमाई नहीं बेटे हो और रेखा बेटी, तुम मेरा बेटा हो।’ मैंने तुम्हें कुछ नहीं दिया है मगर ये सेवा का फल भगवान तुम्हें जरूर देगा।
रेखा ने कहा; ‘बापूजी आपने मुझे संस्कारों का पिटारा दिया है क्या ये कम है।’हम जो सेवा करते हैं ये हमारी फर्ज में आता है। राजेश ने भी बात में सुर पुराया और कहा; ‘बापूजी माता पिता का ऋण हम कभी भी नहीं चुका सकते हैं।’
दोनों की बात सुनकर बापूजी की आंख में हर्ष के अश्रु आ गये!
दोनों बेटे संतान विहीन थे। नौकरी करते थे लेकिन सुखी नहीं थे। अंतर्मन से दुःखी थे। रेखा को दो संतान और अच्छा पति मिला था। सब सुख चैन की जिंदगी जी रहा था। ये माता पिता के सेवा के फल थे।

“वृद्धवस्था में रखो मात पिता का ध्यान,
ईश अल्लाह सब यही इनको दो सम्मान।”

पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात

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